रिवाइज कोर्स मुरली 01-02-1975  

                                        

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

ईश्वर के साथ का और लगन की अग्नि का अनुभव

प्रकृति को दासी बनाकर सदा उदासी को दूर करने की युक्तियाँ बताने वाले शिव बाबा बोलेः-

जो समीप होते हैं, वही समान बनते हैं। जैसे साकार रूप में समीप हो, वैसे ही लगन लगाने में भी बापदादा के तख्त-निवासी हो? जैसे तन से समीप हो, वैसे ही मन से भी समीप हो? जैसे विदेश में रहने वाले तन से दूर होते भी, मन से सदैव समीप हैं, बापदादा के सदैव साथी ही हैं अर्थात् हर समय साथी बनकर साथ का अनुभव करते हैं, वैसे सदैव साक्षी बनने का व साथ निभाने का अनुभव करते हो? जैसे बन्धन में रहने वाली गोपिकाएँ हर श्वास, हर संकल्प बाबा-बाबा की धुन में ही खोई रहती हो? जैसे बाहर वालों को मिलन की तड़प रहती है ऐसे ही हर समय याद की तड़फ में रहते हो या साधारण स्मृति में रहते हो?

हम तो हैं ही बाबा के, हम तो हैं ही समीप, हम तो हैं ही समर्पण और हमारा तो एक बाबा है ही - सिर्फ इन संकल्पों ही से तो संतुष्ट नहीं हो गये हो? अपनी लगन में अग्नि की महसूसता आती है? जिस लगन की अग्नि में स्वयं के पास्ट के संस्कार और स्वभाव और अन्य आत्माओं के दु:खदायी संस्कार व स्वभाव को भस्म कर सको? ज्ञान द्वारा अथवा स्नेह व सम्पर्क द्वारा संस्कार परिवर्तित करते तो हो, लेकिन उसमें समय लगता है। मिटा हुआ-सा संस्कार फिर भी कब प्रत्यक्ष हो जाता है, लेकिन अब समय लगन की अग्नि में भस्म करने का है, जो फिर उस संस्कार का नामोनिशान भी न रहे। इस मुक्ति की युक्ति कौनसी है? अर्थात् इस लगन की अग्नि को पैदा करने की युक्ति व तीली कौनसी है?

तीली से आग जलाते हो न? तो इस अग्नि को प्रज्वलित करने की कौन-सी तीली है? एक शब्द कौन-सा है? दृढ़ संकल्प। अर्थात् मर जायेंगे और मिट जायेंगे लेकिन करना ही है। करना तो चाहिए, होना तो चाहिए, कर ही रहे हैं, हो ही जायेगा, अटेन्शन तो रहता है, और महसूस भी करते हैं - ऐसा सोचना एक प्रकार से यह बुझी हुई तीली है। बार-बार मेहनत भी करते हो, समय भी लगाते हो लेकिन अग्नि प्रज्वलित नहीं होती। कारण यह है कि संकल्प रूपी बीज और दृढ़ता रूपी सार सम्पन्न नहीं है, अर्थात् खाली है। इस कारण जो फल की आशा रखते हो व भविष्य सोचते हो, वह पूर्ण नहीं हो पाता है और चलते-चलते मेहनत ज्यादा, प्राप्ति कम देखते हो तो दिलशिकस्त व अलबेले हो जाते हो।

तब कहते हो कि करते तो हैं लेकिन मिलता नहीं, तो क्यों करें, हमारा पार्ट ही ऐसा है। यह दिल-शिकस्त व अलबेलेपन के और फल न देने वाले संकल्प हैं। आप अन्य आत्माओं को संगमयुग की विशेषता कौनसी बताते हो? सभी को कहते हो कि संगमयुग है - असम्भव से सम्भव होने का। जो बात सारी दुनिया असम्भव समझती है, वह सम्भव करने का युग यही है। तो स्वयं को भी जो मुश्किल व असम्भव महसूस होता है, उसको एक सेकेण्ड में सम्भव करना - यह है दृढ़ संकल्प। सहज को अथवा सम्भव को प्रैक्टिकल में लाना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन असम्भव को सम्भव करना और दृढ़ संकल्प से करना - यह है पास विद ऑनर की निशानी।

अब यह नवीनता करके दिखाओ। तब इस नवीनता पर मार्क्स देंगे। जैसे स्टूडेण्ट हर वर्ष की टोटल रिजल्ट देखते हैं कि हर सब्जेक्ट में कितना परसेन्टेज रहा? वैसे ही अपना रिजल्ट देखना है कि किस बात में चढ़ती कला हुई, किस पुरूषार्थ के आधार से चढ़ती कला हुई व किस सब्जेक्ट में कमी रही, वह पूरा हिसाब निकालो। मुबारिक भी बापदादा सदैव देते हैं क्योंकि सृष्टि का बड़ा दिन तो यही है ना। प्रकृति दासी होती है, परन्तु दासी के कभी दास न बनना और दास बनने की निशानी होगी उदासी। किसी-न-किसी संस्कार व स्वभाव के दास बनते हो, तब उदास होते हो। अच्छा। ओम् शान्ति।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सहज योगी भव!