रिवाइज कोर्स मुरली 04-02-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
ज्ञान को स्वयं में समाने से ही अनमोल मोती और अमोघ शक्ति की प्राप्ति
ज्ञान का खज़ाना देकर सदा-खुश बनाने वाले तथा सर्व शक्तियाँ देने वाले शिव बाबा बोले -
अभी संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें इस समय चातक के समान है जैसे सीप के लिये कहते हैं कि हर बूँद को स्वयं में समाने से मोती बना देती हैं, ऐसे ही आप सभी भी जो ज्ञान के बोल व महावाक्य सुनते हो और धारण करते हो, वह एक-एक बोल क्या बन जाता है? आप भी उसे मोती बना देते हैं और यहाँ एक-एक बोल पदम्-पति बनाने वाला बन जाता है। एक-एक बोल अमूल्य तब बनता है जब उसे धारण करते हो। जैसे चातक बूँद को धारण कर लेते हैं, वैसे ही आप भी इस ज्ञान को सुनकर समा लेते हो। समाने का प्रत्यक्ष स्वरूप क्या दिखाई देता है? ऐसे हर संकल्प, हर बोल और हर कर्म पदमों के जमा करने का आधार बन जाता है।
अर्थात् हर सेकेण्ड के बोल में वह आत्मा पदम-पति स्वरूप में दिखाई देती है। स्थूल धन का नशा और खुशी चेहरे पर चमकती हुई दिखाई देती है लेकिन होती वह अल्पकाल की ही है परन्तु ज्ञान-चातक के चेहरे पर खुशी की झलक सदा स्पष्ट दिखाई देती है। अपने दर्पण में, तीसरे नेत्र द्वारा, अपनी ऐसी झलक को हर समय देखते हो? हर सेकेण्ड के जमा का हिसाब चेक करते हो? प्लस कितना होता है और माइनस कितना होता है - ऐसा अपना स्पष्ट हिसाब रखने के अभ्यासी बने हो? विशेष समय निकाल कर हिसाब-किताब देखते हो? अभी-अभी कमाई, अभी-अभी गँवाई - यह उतार-चढ़ाव अगर ज्यादा होगा तो सोचने, देखने और करने का विशेष समय निकालना होगा।
अगर एक-रस कमाई है, जमा ही होता जाता है, बार-बार नुकसान की कोई बात नहीं है, अर्थात् खाता क्लीयर (Clear; स्पष्ट) है तो जिस समय भी चाहे, एक सेकेण्ड में हिसाब निकाल सकते हैं? क्या रिजल्ट देखते हो? अभी तो अनेक आत्माओं के अनेक जन्मों के बने हुए खाते, जिसको पाप-कर्मों का खाता कहा जाता है, उसको भस्म कराने वाले हैं, वे स्वयं अपना ऐसा खाता बना नहीं सकते। यह तो पुराने खाते हैं। आप तो पुराने खाते समाप्त कर नया जन्म, नये खाते बनाने वाले हो। पुराने खाते सब खत्म हो रहे हैं - ऐसा अनुभव होता है? यदि पुराने खाते को पूर्ण रीति से चुकता करने की युक्ति नहीं आती है तो यह थोड़ा-सा रहा हुआ खाता बार-बार दिल को खाता रहेगा।
यहाँ भी यदि माया का कोई कर्ज होता है तो कर्जदार बार-बार तंग करते हैं। ऐसे कर्ज को मर्ज कहा जाता है। यहाँ भी माया का कोई कर्ज पुराने खाते में रहा हुआ है, तब ही माया बार-बार परेशान करती है व किसी-न-किसी मानसिक कर्ज के रूप में है। वह कर्ज चुक्ता करना पड़ता है। तो अपने खाते को चेक करो कि कोई रहा हुआ कर्ज, संकल्प व संस्कार के रूप में या स्वभाव के रूप में रहा हुआ तो नहीं है? जैसे शारीरिक रोग व कर्ज बुद्धि को एकाग्रचित नहीं करने देता, न चाहते हुए भी अपनी तरफ बार-बार खींच लेता है, ऐसे ही यह मानसिक कर्ज का मर्ज बुद्धि-योग को एकाग्र नहीं करने देता। बल्कि विघ्न रूप बन जाता है।
अभी तो समय की समाप्ति की समीपता है, तो अपने भी सब हिसाब चेक करो और समाप्त करो। हिसाब-किताब आता है ना? मास्टर नॉलेजफुल हो ना? पुराने खाते का कर्ज या तो व्यर्थ संकल्प-विकल्प के रूप में होगा या कोई संस्कार व स्वभाव के रूप में होगा। इन बातों से चेक करो कि संकल्प एक है? याद भी एक को करते हैं, अथवा करना एक को चाहते हैं, होता दूसरा है? अपनी तरफ क्या खींचता है, क्यों खिंचता है? बोझ है कोई, जो अपनी तरफ खींचता है? हल्की चीज कभी भी नीचे नहीं आयेगी, वह चढ़ती कला में ही होगी, किसी भी प्रकार का बोझ, कितना भी ऊपर करना चाहे तो ऊपर नहीं जायेगा, बल्कि नीचे ही आयेगा। ऐसे ही सारे दिन की मन्सा, वाचा, कर्मणा में, सम्पर्क और सेवा में इन बातों को चेक करो।
सेवा में भी प्लान और प्रैक्टिकल में, संकल्प और कर्म में अन्तर क्यों? उस अन्तर का कारण सोचोगे तो स्पष्ट दिखाई देगा कि कोई-न-कोई कमी होने के कारण प्लैन और प्रैक्टिकल में अन्तर होता है। सर्वशक्तियों में से किसी विशेष शक्ति की कमी है। जैसे योद्धा मैदान में सर्वशस्त्रधारी नहीं बन जाते हैं तो समय पर किसी साधारण शस्त्र की भी आवश्यकता पड़ जाती है तो उन्हें साधारण शस्त्र की कमी भी बहुत नुकसान कर देती है। यहाँ भी सर्वशक्तियों का समूह चाहिए अर्थात् सर्व-शस्त्रधारी चाहिये। अपनी बुद्धि से भले ही जज करते हो कि यह तो साधारण बात है, यह कभी भी समय पर बड़ा धोखा देती है। इसलिये टाइटल ही है - मास्टर सर्व-शक्तिवान्।
बाप सर्वशक्तिमान और बच्चे मास्टर सर्वशक्तिवान् नहीं? विजयी का अर्थ ही है - सर्वशस्त्रधारी। चैकिंग के साथ चेन्ज क्यों नहीं कर पाते हो? चेन्ज तब होंगे जब सर्वशक्तियाँ स्वयं में समायी होंगी, अर्थात् नॉलेजफुल के साथ-साथ पॉवरफुल दोनों का बैलेन्स चाहिए। अगर नॉलेजफुल 75% और पॉवरफुल में तीन-चार मार्क्स भी कम हैं, तो भी बैलेन्स बराबर-बराबर चाहिए। नॉलेजफुल का रिजल्ट है - प्लैनिंग, पॉवरफुल की रिजल्ट है - प्रैक्टिकल। नॉलेजफुल का रिजल्ट है - संकल्प और पॉवरफुल का रिजल्ट है - स्वरूप में आना। दोनों की समीपता और समानता ही दोनों का समान रूप बनना अर्थात् सम्पूर्ण बनना। योग में और सेवा में जितना समय स्वयं को बिजी रखोगे तो ऑटोमेटिकली कर्जदार को आने की हिम्मत व फुर्सत नहीं मिलेगी। अच्छा!
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।