रिवाइज कोर्स मुरली 05-02-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
पवित्रता - प्रत्यक्षता की पूर्वगामिनी है और पर्सनेलिटी की जननी
रूहानी रॉयल्टी के संस्कार भरने वाले, सर्वोतम पर्सनेलिटी बनाने वाले, विश्व के परमपिता शिव बोले -
आज बाप सर्व देवों के भी देव, सर्व राजाओं के भी राजा बनाने वाले रचयिता की रचना, अर्थात् श्रेष्ठ आत्माओं के श्रेष्ठ भाग्य को देख हर्षित हो रहे हैं। आप ऊंचे-से-ऊंचे, बाप से भी ऊंची बनने वाली आत्मायें हैं। आज ऐसी ऊंची आत्माओं की विशेष दो बातें देख रहे हैं। वह कौन-सी हैं? एक रूहानी रॉयल्टी, दूसरी पर्सनेलिटी। जब हैं ही ऊंचे-से-ऊंचे बाप की ऊंची सन्तान - जिन्हों के आगे देवतायें भी श्रेष्ठ नहीं गाये जाते, राजायें भी चरणों में झुकते हैं, और सर्व नामी-ग्रामी आत्मायें भी भिखारी बन ईश्वरीय प्रसाद लेने के लिए जिज्ञासा रख आने वाली हैं तो ऐसी सर्व- आत्माओं के निमित्त बने हुए आप सभी मास्टर-ज्ञानदाता और वरदाता हो। तो ऐसी रॉयल्टी है?
वास्तव में तो प्योरिटी ही रॉयल्टी है और प्योरिटी ही पर्सनेलिटी है। अब अपने को देखो कितने परसेन्ट प्योरिटी धारण की हुई है? प्योरिटी की परख व पहचान हरेक की रॉयल्टी और पर्सनेलिटी से हो रही है। रॉयल्टी कौनसी है? रॉयल आत्मा को हद की विनाशी वस्तु व व्यक्ति में कभी आकर्षण नहीं होगा। जैसे लौकिक रीति से रॉयल पर्सनेलिटी वाली आत्मा को किन्हीं छोटी-छोटी चीजों में ऑख नहीं डूबती है, किसी के द्वारा गिरी हुई कोई भी चीज स्वीकार करने की इच्छा नहीं होती है, उनके नयन सदा सम्पन्न होने के नशे में रहते हैं, अर्थात् नयन नीचे नहीं होते हैं, उनके बोल मधुर और अनमोल अर्थात् गिनती के होते हैं और उनके सम्पर्क में खुमारी अनुभव होती है, ऐसे ही रूहानी रॉयल्टी उससे भी पदम गुणा श्रेष्ठ है।
ऐसी रॉयल्टी में रहने वाली आत्माओं की कभी भी एक-दूसरे के अवगुणों या कमजोरी की तरफ आँख भी नहीं जा सकती। जिसको दूसरा छोड़ रहा है अर्थात् मिटाने के पुरूषार्थ में लगा हुआ है, ऐसी छोड़ने वाली चीज अर्थात् गिरावट में लाने वाली चीज और गिरी हुई चीज, रूहानी रॉयल्टी वाले के संकल्प में भी धारण नहीं हो सकती व दूसरे की वस्तु की तरफ कभी संकल्प रूपी ऑख भी नहीं जा सकती। तो यह पुराने तमोगुणी स्वभाव, संस्कार, कमज़ोरियाँ शूद्रों की हैं न कि ब्राह्मणों की। शूद्रों की वस्तु की तरफ संकल्प कैसे जा सकता है? अगर धारण करते हैं तो जैसे कहावत है ना कि ‘‘कख का चोर सो लख का चोर’’ - तो यह भी सेकेण्ड-मात्र व संकल्पमात्र धारण करने वाली आत्माएं रॉयल नहीं गायी जायेंगी।
रूहानी रॉयल्टी वाली आत्माओं के बोल महावाक्य होते हैं। ये वाक्य गोल्डन वर्शन्स होते हैं, जिन्हें सुनने वाले भी गोल्डन एज के अधिकारी बन जाते हैं। एक-एक बोल रत्न के समान वेल्युएबल होता है वे दु:ख देने वाले, गिराने वाले या पत्थर के समान बोल नहीं होते, साधारण और व्यर्थ भी नहीं होते, समर्थ और स्नेह के बोल होते हैं। सारे दिन के उच्चारण किये हुए बोल ऐसे श्रेष्ठ होते हैं कि हिसाब निकालने पर स्मृति में आ सकते हैं कि आज ऐसे और इतने बोल बोले। रॉयल्टी वाले की निशानी व विशेषता यह है कि पचास बोल बोलने वाले विस्तार के बजाय दस बोल के सार में बोले, क्वॉन्टिटी को कम कर क्वॉलिटी में लाये।
रूहानी रॉयल्टी वाले के सम्पर्क में जो भी आत्मा आये, उसे थोड़े समय में भी, उस आत्मा के दातापन की व वरदातापन की अनुभूति होनी चाहिए, शीतलता व शान्ति की अनुभूति होनी चाहिए जो हर-एक के मन में यह गुणगान हो कि यह कौन-सा फरिश्ता था, जो सम्पर्क में आया। थोड़े समय में भी उस तड़पती हुई और भटकती हुई आत्मा को बहुत काल की प्यास बुझाने का साधन व ठिकाना दिखाई देने लगे। इसको कहा जाता है - पारस के संग लोहा भी पारस हो जाए, अर्थात् रूहानी रॉयल्टी वाले की रूहानी नजर से निहाल हो जाए। ऐसी रॉयल्टी अनुभव करते हो? अब सेवा की गति तीव्र चाहिए। वह तब होगी, जब ऐसी रूहानी रॉयल्टी चेहरे से दिखाई देगी। तब ही सर्व-आत्माओं का उलाहना पूर्ण कर सकेंगे।
ऐसी प्योरिटी की पर्सनेलिटी हो कि जो मस्तक द्वारा शुद्ध आत्मा और सतोप्रधान आत्मा दिखाई दे अर्थात् अनुभव कर सके, नयनों द्वारा भाई-भाई की वृत्ति अर्थात् शुद्ध, श्रेष्ठ वृत्ति द्वारा वायुमण्डल व वायब्रेशन परिवर्तित कर सको। जब लौकिक पर्सनेलिटी अपना प्रभाव डाल सकती है तो प्योरिटी की पर्सनेलिटी कितनी प्रभावशाली होगी? शुद्ध स्मृति द्वारा निर्बल आत्माओं को समर्थी स्वरूप बना सकते हो? ऐसी रॉयल्टी और पर्सनेलिटी स्वयं में प्रत्यक्ष रूप में लाओ। तब स्वयं को व बाप को प्रत्यक्ष कर सकेंगे! अब विशेष रहमदिल बनो। स्वयं पर भी और सर्व पर भी रहमदिल! सहज ही सर्व के स्नेही और सहयोगी बन जायेंगे। समझा? ऐसे भाग्य का सितारा चमक रहा है न? ऐसे धरती के सितारों को सब चमकता हुआ देखना चाहते हैं।
अच्छा, गोल्डन वर्शन्स द्वारा गोल्डन एज लाने वाले, सर्व के प्रति सदा रहमदिल, सर्वगुणों से सम्पन्न, सर्व प्राप्ति करने वाले, एक आत्मा को भी वंचित नहीं रखने वाले ऐसे सदा दाता, रूहानी रॉयल्टी और पर्सनेलिटी में रहने वाले, सदा चमकते हुए सितारों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते!
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।