रिवाइज कोर्स मुरली 07-10-1975  

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

सर्व अधिकार और बेहद के वैराग्य वाला ही राजऋषि

सदा विजयी बनाने वाले तथा सर्व अधिकारों की प्राप्ति कराने वाले रूहानी मिलिट्री के सर्वोच्च कमाण्डर निराकार शिव बाबा बोले: -

आज बापदादा कौन-सी सभा देख रहे हैं? यह है राज ऋषियों की सभा। अपने को सदा राज ऋषि समझते हुए चलते हो? एक तरफ राज्य, दूसरी तरफ ऋषि। दोनों के लक्षण अलग-अलग हैं। वह है भाग्य, वह है त्याग। वह है सर्वअधिकारी और वह फिर ऋषि अर्थात् बेहद के वैरागी। सर्व अधिकारी और बेहद के वैरागी। वह सर्व का प्यारा और वह सबसे न्यारा। दोनों ही लक्षण, बोल और कर्म में सदा साथ-साथ दिखाई देते हैं। वर्तमान स्वराज्य अर्थात् स्व का इन सर्व-कर्मइन्द्रियों पर राज्य - इसको कहते हैं स्वराज्य और वही है भविष्य का डबल राज्य अधिकारी। डबल राज्य का नशा सदा रहता है?

जितना राज्य का नशा उतना ही बेहद का वैराग अर्थात् ऋषि रूप सदा स्मृति में रहता है? दोनों का बैलेन्स है। वा एक स्वरूप याद रहता है, दूसरा भूल जाता है? इस पुरानी देह और देह की दुनिया से बेहद के वैरागी बन गये हो? वा अभी भी यह पुरानी देह और दुनिया अपनी तरफ आकर्षित करती है? यह कब्रिस्तान अनुभव होता है? सभी मूर्च्छित हुई आत्मायें नजर आती हैं या सिर्फ कहने मात्र हैं? ये सब मरे पड़े हैं अर्थात् कब्रिस्तान है, जब तक वह अनुभव न होगा तो बेहद के वैरागी नहीं बन सकेंगे। आज की दुनिया में भी हद के वैरागी जंगल में या श्मशान में जाते हैं। इसलिए ही गायन है श्मशानी वैराग्य। तो जब तक यह दुनिया श्मशान है, ऐसा अनुभव नहीं होगा तो सदाकाल का बेहद का वैराग्य - यह अनुभव कैसे होगा?

अपने आप से पूछो कि ऋषि बना हूँ? ऐसे निश्चय बुद्धि वैराग्य के साथ-साथ अधिकार की खुशी में भी रहेगे तो राज-ऋषि बनने के लिए जितना ही राज्य का नशा उतना ही बेहद के वैराग्य के नजारे, दोनों ही साथ-साथ अनुभव होंगे। जितना कब्रिस्तान अनुभव होगा, उतना ही परिस्तान सामने दिखाई देगा। त्याग के साथ-साथ भाग्य भी स्पष्ट सामने दिखाई देगा। सम्पूर्ण राजऋषि की स्थिति अर्थात् नशा और निशाने दोनों ही स्पष्ट होंगे। निशाना अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज। ऐसे नशे में रहने वाले के सामने निशाना इतना समीप होगा जैसे स्थूल नेत्रों के सामने स्थूल वस्तु स्पष्ट दिखाई देती है।

 जब सामने दिखाई देती है, तो फिर कोई संकल्प नहीं उठेगा कि यह वस्तु है कि नहीं है, क्या है, वा कैसी है? ऐसे ही सम्पूर्ण स्टेज का निशाना सामने दिखाई देने के कारण, मैं बनूँगा या नहीं बनूँगा वा सम्पूर्ण स्टेज किसको कहा जाता है यह क्वेश्चन समाप्त हो जायेगा। अपने सम्पूर्ण स्टैज की निशानियाँ स्वयं में स्पष्ट नजर आयेंगी। वह निशानियाँ क्या होंगी, वह जानते हो व अनुभव करते हो? पहली निशानी-पुरानी दुनिया की किसी भी व्यक्ति वा वैभव से संकल्प-मात्र वा स्वप्न-मात्र भी लगाव नहीं होगा। सदा स्वयं को कलियुगी दुनिया से किनारा करने वाले संगमयुगी समझेंगे। सारी सृष्टि की आसुरी आत्माओं को कल्याण और रहम की दृष्टि से देखेंगे।

सदा स्वयं को बाप समान विश्व-सेवाधारी अनुभव करेंगे। हर परिस्थिति वा परीक्षा में सदा स्वयं को विजयी अनुभव करेंगे। विजय मेरा जन्म-सिद्ध अधिकार है। ऐसा अधिकारी स्वरूप समझ कर हर कर्म करेंगे। सदा त्रिमूर्ति तख्त-नशीन अनुभव करेंगे। त्रिकालदर्शीपन के स्मृति स्वरूप होने के कारण हर कर्म के तीनों कालों को जानने वाले हर कर्म को श्रेष्ठ कर्म वा सुकर्मा बनायेंगे। विकर्म का खाता समाप्त हुआ अनुभव होगा। हर कार्य, हर संकल्प सिद्ध हुआ ही पड़ा है ऐसा सदा अनुभव करेंगे, पुराने संस्कार और स्वभाव से उपराम अनुभव करेंगे, सदा साक्षीपन की सीट पर स्वयं को सैट हुआ अनुभव करेंगे। यह है - निशानियाँ भी और निशाना भी। ऐसे को कहा जाता है ‘राजऋषि’।

ऐसे राज-ऋषि बने हो? टाईटल तो राज-ऋषि का मिला है ना? जो टाईटल हैं वही प्रैक्टिकल भी है ना? ब्राह्मण अर्थात् कहना और करना, सोचना और बोलना, सुनना और स्वरूप में लाना ‘एक समान’ हो। सब ब्राह्मण हो ना? एक सेकेण्ड में जहाँ अपने को चाहो उस स्थिति में स्थित कर सकते हो? ऐसे एवर रेडी  बने हो? अशरीरी बनने का अभ्यास इतना ही सरल अनुभव होता है जैसे शरीर में आना अति सहज और स्वत: लगता है। रूहानी मिलिट्री हो ना?

मिलिट्री अर्थात् हर समय सेकेण्ड में ऑर्डर को प्रैक्टिकल में लाने वाले। अभी-अभी ऑर्डर हो अशरीरी भव, तो एवररेडी हो या रेडी होना पड़ेगा? अगर मिलिट्री रेडी होने में समय लगाये तो विजय होगी? ऐसा सदा एवररेडी रहने का अभ्यास करो। अच्छा। ऐसे सदा सर्व अधिकारों के नशे में रहने वाले संगमयुगी श्रेष्ठ ब्राह्मणों, स्वराज्य और विश्व के राज्य के नशे में रहने वाले, श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

उधारमूर्ति भव!