रिवाइज कोर्स मुरली 08-10-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
स्वयं सन्तुष्ट होने तथा दूसरों को सन्तुष्ट करने की विधि
सर्व को सन्तुष्ट करने वाले, पॉवरफुल स्टेज पर खड़ा करने वाले, आसुरी संस्कारों को मिटाने वाले शिव बाबा संगमयुगी वत्सों के प्रति बोले: -
आपको अपना संगमयुगी और भविष्य स्वरूप स्पष्ट दिखाई देता है? फ्युचर स्पष्ट दिखाई देने से पुरूषार्थ भी ठीक होता है। अन्तिम स्वरूप है ही महाकाली का अर्थात् आसुरी संस्कारों को समाप्त करने वाला। इस लिये आपको सदा स्मृति में रखना है कि मैं महाकाली स्वरूप हूँ - इस लिये आप में अब कोई भी आसुरी संस्कार नहीं रहना चाहिए। आप निमित्त बनी आत्माओं को सदा यह अटेन्शन रहना चाहिये कि मैं तीव्र पुरूषार्थ करूँ। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन क्या है? (जो कर्म मैं करूँगा, मुझे देख दूसरे भी वैसा ही करेंगे) यह तो मध्यम पुरूषार्थ का सलोगन है। तीव्र पुरूषार्थ का सलोगन है - ‘जैसा संकल्प मैं करूँगा मेरे संकल्प का वैसा ही वातावरण बनेगा।’
संकल्प का भी आधार वातावरण पर और वातावरण का आधार पुरूषार्थ पर है। जो संकल्प करेंगे उसे सभी फॉलो करेंगे। कर्म तो मोटी बात है, लेकिन संकल्प पर भी अटेन्शन संकल्प को हल्की बात नहीं समझना, क्योंकि संकल्प है बीज। संकल्प रूपी बीज कमज़ोर होगा तो कभी भी पॉवरफुल फल अनुभव नहीं होगा। एक संकल्प का भी व्यर्थ जाना, यह भी एक भूल है। जैसे वाणी में हुई भूल महसूस होती है, वैसे व्यर्थ संकल्प की भी भूल महसूस होनी चाहिए। जब ऐसी चैकिंग करेंगे तब ही आप आगे बढ़ सकेंगे। नहीं तो निमित्त बनने का जो चांस मिला है, उसका लाभ उठा नहीं सकेंगे। अब तो गुह्य महीन पुरूषार्थ होना चाहिए। अब मोटे पुरूषार्थ का समय समाप्त हो गया।
कर्म और बोल में गलतियों का होना - यह है बचपन। अब वानप्रस्थी का पुरूषार्थ होना चाहिए। अब भी अगर बचपन का पुरूषार्थ करते रहे तो लक्क अर्थात् भाग्य की लॉटरी को गँवा देंगे। कभी हर्षित, कभी उदास, कभी तीव्र पुरूषार्थ और कभी मध्यम पुरूषार्थ का होना यह कोई विशेष आत्मा की निशानी नहीं। यह तो साधारण आत्मा हुई। अब तो आप सभी में विशेष न्यारापन होना चाहिए। जो अपनी पॉवरफुल स्मृति से कमज़ोर आत्माओं की स्थिति को भी पॉवरफुल बना दो। संतुष्ट न होने के कारण सर्विस रूकी हुई है। तो अब यह भी सलोगन याद रखो - संतुष्ट रहना भी है और सबको संतुष्ट करना भी है। समझा? अच्छा।
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।