रिवाइज कोर्स मुरली 08-12-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
शक्तियों की सिद्धि से महारथी की परख
सर्व शक्तियों और सिद्धियों का वरदान देने वाले सर्वशक्तिमान् शिव बाबा बोले:-
हर एक के मस्तक द्वारा मस्तक-मणि को देखते हुए क्या तकदीर की लकीर को पहचान सकती हो? मस्तक बीच चमकती हुई मणि अर्थात् श्रेष्ठ आत्मा के वायब्रेशन द्वारा सहज पहचान हो जाती है। हर एक आत्मा के पुरूषार्थ व प्राप्ति का अनुभव वायब्रेशन द्वारा सहज ही समझ में आ सकता है। जैसे कोई खुशबू की चीज़ फौरन ही वातावरण में फैल जाती है और सहज ही परख में आ जाती है कि यह अच्छी है अथवा नहीं है। इसी प्रकार जितना-जितना परखने की शक्ति बढ़ती जाएगी तो कोई भी आत्मा सामने आयेगी तो वह कहाँ तक रूहानियत की अनुभवी है वह फौरन ही उसके वायब्रेशन द्वारा स्पष्ट समझ में आ जायेगा।
परसेन्टेज की परख भी सहज आ जायेगी कि कितने परसेन्टेज में रूहानी स्थिति में स्थित रहने वाला है। जैसे साइन्स के यन्त्रों द्वारा परसेन्टेज का मालूम पड़ जाता है। ऐसे ही साइलेन्स की शक्ति के द्वारा अर्थात् आत्मा की स्थिति द्वारा यह भी समझ में आ जायेगा। इसको कहा जाता है परखने की शक्ति। संस्कारों द्वारा, वाणी द्वारा और चलन द्वारा परखना यह तो कॉमन बात है लेकिन संकल्पों के वायब्रेशन द्वारा परखना - इसको कहा जाता है परखने की शक्ति समझा? महारथियों के परखने की शक्ति यह है।
यह शक्ति इतनी तब बढ़ेगी जो भले कोई सामने न भी हो-लेकिन आने वाला हो अथवा दूर भी हो, लेकिन दूर होते हुए भी परखने की शक्ति के आधार से ऐसे उनको परख सके जैसे कि कोई सामने वाले को परखा जाता है। इसी को ही दूसरे शब्दों में ‘शक्तियों की सिद्धि’ कहा गया है यह सिद्धि प्राप्त होगी। जैसे आत्म-ज्ञानियों को भी यह सिद्धि होती है कि जबान से कोई बोल न भी बोले लेकिन वह क्या बोलना चाहते हैं वह समझ जाते हैं, क्या करने वाला है उनको पहले परख लेते हैं। तो यहाँ भी यह परखने की शक्ति सिद्धि के रूप में प्राप्त होगी। लेकिन सिर्फ इन शक्तियों को यथार्थ रीति से कार्य में लाना है -- न व्यर्थ गँवायें, न व्यर्थ कार्य में लगायें।
फिर यह सिद्धि व शक्ति बहुत कल्याण के निमित्त बनती है। यह भी आयेगी। जिसको देखते हुए सबके मुख से शक्तियों की महिमा जो भक्ति में निकली है - आप यह हो, यह हो! यह सब महिमा पहले प्रत्यक्ष रूप में होगी। जो फिर यादगार में चलती आयेगी। यह भी स्टेज होनी है लेकिन थोड़े समय के लिए और थोड़ों की। इसलिए कहते हैं कि जो अन्त तक होंगे उनको यह सब नज़ारे देखने और अनुभव होने के प्राप्त होंगे। अन्त तक अंगुली देने लिये पार्ट भी ऐसे शक्तियों के होंगे ना? शक्ति व पाण्डव। लेकिन शक्ति स्वरूप के होंगे, कमज़ोरों के नहीं। बिल्कुल साथ-साथ होगा। एक तरफ हाहाकार और दूसरी तरफ जयजयकार। वह भी अति में और यह भी अति में होगा। अच्छा!
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।