रिवाइज कोर्स मुरली 09-12-1975  

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

महावीर अर्थात् विशेष आत्माओं की विशेषताएं

विशेष पुरूषार्थ से विशेष अनुभवी बनाने वाले विशेष आत्माओं के प्रति शिव बाबा बोले:-

महारथी अर्थात् महावीरों का संगठन। महावीर अर्थात् विशेष-आत्मा। ऐसे महावीर, विशेष आत्माओं के संगठन की विशेषता कौन-सी होती है? वर्तमान समय विशेष आत्माओं की विशेषता यह होनी चाहिए जो एक ही समय सबकी एक-रस, एक-टिक स्थिति हो। अर्थात् जितना समय, जिस स्थिति में ठहरना चाहे, उतना समय, उस स्थिति में संगठित रूप में स्थित हों - संगठित रूप में सबके संकल्प रूपी अंगुली एक हो। जब तक संगठन की यह प्रैक्टिस नहीं है, तब तक सिद्धि नहीं होगी। संगठन में ही हलचल है, तो सिद्धि में भी हलचल हो जाती है। सिद्धि की नॉलेज है, लेकिन स्वरूप में नहीं आते। ऑर्डर मिले और रेडी।

विशेष निमित्त बनी हुई विशेष आत्माओं को ही प्रैक्टिकल में लाना है ना। अभी ऑर्डर हो कि पाँच मिनट के लिए व्यर्थ संकल्प बिल्कुल समाप्त कर बीजरूप पॉवरफुल स्थिति में एक-रस स्थित हो जाओ - तो ऐसा अभ्यास है? ऐसे नहीं कोई मनन करने की स्थिति में हो, कोई रूह-रूहान कर रहा हो और कोई अव्यक्त स्थिति में हो। ऑर्डर है बीजरूप होने का और कर रहे हैं रूह-रूहान तो ऑर्डर नहीं माना ना। यह अभ्यास तब होगा जब पहले व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति करेंगे। हलचल होती ही व्यर्थ संकल्पों की है। तो इन व्यर्थ संकल्पों की समाप्ति के लिए अपने संगठन को शक्तिशाली व एक मत बनाने के लिए कौन-सी शक्ति चाहिए कि जिससे संगठन पॉवरफुल और एक-मत हो जाए और व्यर्थ संकल्प भी समाप्त हो जायें?

इसके लिए एक तो फेथ और समाने की शक्ति चाहिए। संगठन को जोड़ने का धागा है फेथ। किसी ने जो कुछ किया, मानो राँग भी किया, लेकिन संगठन प्रमाण वा अपने संस्कारों प्रमाण व समय प्रमाण उसने जो किया उसका भी ज़रूर कोई भाव-अर्थ होगा। संगठित रूप में जहाँ सर्विस है, वहाँ उसके संस्कारों को भी रहमदिल की दृष्टि से देखते हुए, संस्कारों को सामने न रख इसमें भी कोई कल्याण होगा इसको साथ मिलाकर चलने में ही कल्याण है ऐसा फेथ जब संगठन में एक दूसरे के प्रति हो, तब ही सफलता हो सकती है। पहले से ही व्यर्थ संकल्प नहीं चलाने चाहिएँ। जैसे कोई अपनी गलती को महसूस भी करते हैं लेकिन उसको कभी फैलायेंगे नहीं बल्कि उसे समायेंगे।

 दूसरा उसको फैलायेगा तो भी बुरा लगेगा। इसी प्रकार दूसरे की गलती को भी अपनी गलती समझ फैलाना नहीं चाहिए। व्यर्थ संकल्प नहीं चलाने चाहियें बल्कि उन्हें भी समा देना चाहिए। इतना एक-दो में फेथ हो! स्नेह की शक्ति से ठीक कर देना चाहिए। जैसे लौकिक रीति भी घर की बात बाहर नहीं करते हैं, नहीं तो इससे घर को ही नुकसान होता है। तो संगठन में साथी ने जो कुछ किया उसमें ज़रूर रहस्य होगा, यदि उसने राँग भी किया हो, तो भी उसको परिवर्तन कर देना चाहिए। यह दोनों प्रकार के फेथ रख कर एक-दूसरे के सम्पर्क में चलने से, संगठन की सफलता हो सकती है। इसमें समाने की शक्ति ज्यादा चाहिए। व्यर्थ संकल्पों को समाना है।

 बीते हुए संस्कारों को कभी भी वर्तमान समय से टैली न करो अर्थात् पास्ट को प्रेजेन्ट न करो। जब पास्ट को प्रेजेन्ट में मिलाते हैं, इससे ही संकल्पों की क्यू लम्बी हो जाती है और जब तक यह व्यर्थ संकल्पों की क्यू है, तब तक संगठित रूप में एकरस स्थिति हो नहीं सकती। ‘दूसरे की गलती सो अपनी गलती समझना’ - यह है संगठन को मजबूत करना। यह तब होगा जब एक-दूसरे में फेथ होगा। परिवर्तन करने का फेथ या कल्याण करने का फेथ। जैसे आत्म-ज्ञानियों के सिद्धि का गायन है, वैसे आप सबके संगठन का एक ही संकल्प हो। एक संकल्प की शक्ति संगठित रूप में न होने के कारण बिगड़े हुए हैं। जैसे बिगड़ी हुई शक्ति है वैसे रिजल्ट भी बिगड़ा हुआ है।

 इसमें समाने की शक्ति ज़रूर चाहिए। देखा और सुना - उसको बिल्कुल समा कर, वही आत्मिक दृष्टि और कल्याण की भावना रहे। जब अज्ञानियों के लिए कहते हो - अपकारियों पर उपकार करना है; तो संगठन में भी एक दूसरे के प्रति रहम की भावना रहे। अभी रहम की भावना कम रहती है क्योंकि आत्मिक-स्थिति का अभ्यास कम है। ऐसा पॉवरफुल संगठन होने से ही सिद्धि होगी। अभी आप सिद्धि का आह्वान करते हो, लेकिन फिर आपके आगे सिद्धि स्वयं झुकेगी। जैसे सतयुग में प्रकृति दासी बन जाती है, वैसे सिद्धि आपके सामने स्वयं झुकेगी। सिद्धि आप लोगों का आह्वान करेगी। जब श्रेष्ठ नॉलेज है, स्टेज भी पॉवरफुल है तो सिद्धि क्या बड़ी बात है?

 अल्पकाल वालों को सिद्धि प्राप्त होती है और सदाकाल स्थिति में रहने वालों को सिद्धि प्राप्त न हो, यह हो नहीं सकता। तो यह संगठन की शक्ति चाहिए। एक ने कुछ बोला, दूसरे ने स्वीकार किया। सामना करने की शक्ति ब्राह्मण परिवार के आगे यूज़ नहीं करनी है। वो सामना करने की शक्ति माया के आगे यूज़ करनी है। परिवार से सामना करने की शक्ति यूज़ करने से संगठन पॉवरफुल नहीं होता। कोई भी बात नहीं जंचती तो भी एक-दूसरे का सत्कार करना चाहिए। उस समय किसी के संकल्प वा बोल को कट नहीं करना चाहिए। इसलिये अब समाने की शक्ति को धारण करो।

जैसे साकार बाप को देखा। अथॉरिटी होते हुए भी बाप के आगे बच्चे तो छोटे ही हैं, रचना हैं - लेकिन रचना होते हुए भी बच्चों से रिगार्ड के बोल बोलते थे। कभी किसी को भी कुछ नहीं कहा, अथॉरिटी होते हुए भी अथॉरिटी को यूज़ नहीं किया तो आपस में भाई-बहन के नाते आपको कैसा होना चाहिए? संगठित रूप में आप ब्राह्मण बच्चों की आपस के सम्पर्क की भाषा भी अव्यक्त भाव की होनी चाहिए। जैसे फरिश्ते अथवा आत्मायें आत्माओं से बोल रही हैं! किसी की सुनी हुई गलती को संकल्प में भी स्वीकार न करना और न कराना ही चाहिये। ऐसी जब स्थिति हो तब ही बाप की जो शुभ कामना हैसंगठ न की, वह प्रैक्टिकल में होगी।

 एक भी पॉवरफुल संगठन होने से एक-दूसरे को खींचते हुए 108 की माला का संगठन एक हो जायेगा। एक-मत का धागा हो और संस्कारों की समीपता हो तब-ही माला भी शोभेगी। दाना अलग होगा या धागा अलग-अलग होगा तो माला शोभेगी नहीं। अब प्रत्यक्षता वर्ष मनाने से पहले स्वयं में वा निमित्त बने हुए सेवाधारियों के संगठित रूप से यह शक्ति भी प्रत्यक्ष होनी चाहिए। अगर स्वयं में ही शक्ति की प्रत्यक्षता नहीं होगी, तो बाप को प्रत्यक्ष करने में जितनी सफलता चाहते हो, उतनी नहीं होगी। ड्रामानुसार होना है, वह तो हो ही जाता है। लेकिन निमित्त बने हुए को निमित्त बनने का फल दिखाई दे, वह नहीं होता। भावी करा रही है। इसलिए संगठित रूप में, ऐसे विशेष पुरूषार्थ की लेन-देन और याद की यात्रा के प्रोग्राम होने चाहिएं ।

 विशेष पुरूषार्थ अथवा विशेष अनुभवों की आपस में लेन-देन हो। ऐसा संगठन पाण्डवों का होना चाहिए। ऐसे विशेष योग के प्रोग्राम चलते रहे तो फिर देखो विनाश ज्वाला को कैसे पंखा लगता है। योग- अग्नि से विनाश की अग्नि जलेगी। वह है विनाश-ज्वाला, यह है योग ज्वाला। जो ज्वाला से ज्वाला प्रज्वलित होगी। आप लोगों के योग का साधारण रूप है तो विनाश ज्वाला भी साधारण है। संगठन पॉवरफुल हो। जैसे जब कोई चीज बनती है तो उसमें पानी चाहिए, घी चाहिए और नमक भी चाहिए, नहीं तो वह चीज़ बन न सके। वैसे हर-एक में अपनी-अपनी विशेषता है लेकिन यहाँ तो सर्व की विशेषताओं का संगठन चाहिए। क्योंकि समय भी अब चैलेन्ज  कर रहा है ना। अच्छा!

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सदा ज्ञान सितारा भव!