रिवाइज कोर्स मुरली 11-02-1975  

                                                

निराकार ज्योतिविन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

माया से युद्ध करने वाले पाण्डवों के लिए धारणाएं

पाण्डव पति शिव बाबा बोले -

पाण्डवों के लिये जो कल्प पहले का गायन है, क्या वह सब विशेषतायें वर्तमान समय जीवन में अनुभव होती हैं? यह जो गायन है कि उन्होंने पहाड़ों पर स्वयं को गलाया-इसका रहस्य क्या है? किस बात में गलाया? सूक्ष्म बात का ही यादगार स्थूल रूप में होता है। जैसे चैतन्य का यादगार स्थूल में होता है, वैसे ही सूक्ष्म को स्पष्ट करने के लिये दृष्टान्त दिया जाता है। स्वयं को सफलता मूर्त बनाने के निमित्त पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ में जो विघ्न सामने आते हैं, उन विघ्नों के कारण क्या स्वयं को सफलतामूर्त नहीं बना सकते हैं? या बार-बार उसी स्वभाव व संस्कार के कारण असफलता होती है जिसको निजी संस्कार व नेचर कहा जाता है।

 तो ऐसे निजी संस्कारों को गलाना अर्थात् स्वयं को गलाना कि देखने या सम्पर्क में आने वाले यह महसूस करें कि इस आत्मा ने स्वयं को गलाया है। इसमें सफलता है! ड्रामा प्रमाण जितना सहजयोगी, श्रेष्ठ योगी और सफलतामूर्त बनने की सेल्वेशन प्राप्त है, उतना ही रिटर्न दिया है? वातावरण की भी सेल्वेशन है तो इसका रिटर्न वातावरण को पॉवरफुल बनाकर रखने में, सहयोगी बनने में रिटर्न दो। साथ-साथ श्रेष्ठ संग है, यह भी सेलवेशन है तो जो भी आत्मायें अपना भाग्य प्राप्त करने के लिए आती हैं उन्हों को भी अपने संग की श्रेष्ठता का अनुभव हो। यह है रिटर्न। सब अनुभव करें कि यह सब आत्मायें संग के रंग में रंगी हुई हैं। श्रेष्ठ बनेंगे रूहानी संग से और अपने चरित्रों द्वारा।

अपने कर्मयोगी की स्टेज द्वारा और अपने गुणमूर्त स्वरूप द्वारा आने वाली आत्माओं का इग्जॉम्पल बन, साधन बन उनकी सहज प्राप्ति का साधन बन जाओ। आपका प्रैक्टिकल साकार स्वरूप का सैम्पल देख उनमें विशेष उमंग उत्साह रहे। सदैव हर बात में यही संकल्प रखना चाहिए कि हर कार्य में, हर प्रैक्टिकल सबूत के पहले हम सैम्पल है। हर ब्त में हम सैम्पल हैं। जब ऐसा लक्ष्य आगे रखेंगे तब ही पुरूषार्थ की गति को तीव्र कर सकेंगे। भले ही आराम के साधन प्राप्त हैं, परन्तु आराम पसन्द नहीं बन जाना है। पुरूषार्थ में भी आराम पसन्द न होना अर्थात् अलबेला न होना है। आराम के साधनों का एडवान्टेज (लाभ) सदाकाल की प्राप्ति का विघ्न रूप नहीं बनाना।

यह अटेन्शन रखना है। अगर किसी भी प्रकार की सिद्धि अथवा प्राप्ति को स्वीकार किया तो वहाँ कम हो जायेगा। साधन मिलते हुए भी उसका त्याग। प्राप्ति होते हुए भी त्याग करना उसको ही त्याग कहा जाता है। जब कि है ही अप्राप्ति, उसको त्याग दो तो यह मजबूरी हुई न कि त्याग। इतना अटेन्शन, अपने ऊपर रखते हो अथवा सहजयोग का यह अर्थ समझते हो कि सहज साधनों द्वारा योगी बनना है। हर बात में अटेन्शन रहे। रिटर्न देना अर्थात् आगे के लिए कट करना। खत्म करना। माइनस हो रहा है अथवा प्लस, हो रहा है यह चेक (जाँच) करना है। अच्छा।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सदा तपस्वीमूर्त भव!