रिवाइज कोर्स मुरली 11-10-1975  

                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

अन्त:वाहक रूप द्वारा परिभ्रमण

महारथी बच्चों को देख बापदादा बोले :-

आजकल इस पुरानी सृष्टि में विशेष क्या चल रहा है? आजकल विशेष आप लोगों का आह्वान चल रहा है। फिर आह्वान का रिसपॉन्स करते हो? भक्त क्या चाहते हैं? भक्तों की इच्छा यही है कि देवियाँ चैतन्य-रूप में प्रगट हो जाएं । जड़ चित्रों में भी चैतन्य शक्तियों का आह्वान करते हैं कि चैतन्य रूप में वरदानी बन वरदान दे दें। तो यह इच्छा भक्तों की कब पूरी होगी? भक्ति का भी अभी फुल फोर्स चारों ओर दिखाई दे रहा है। उसमें भी जैसे प्रैक्टिकल में बाप गुप्त है और शक्तियाँ प्रत्यक्ष रूप में हैं। ऐसे ही भक्ति में भी पहले बाप की पुकार ज्यादा करते थे - हे भगवान् कह पुकारते थे - लेकिन अभी मेजॉरिटी  भगवती की पूजा होती है।

भक्तों की भावना पूरी करने के लिए शक्तियाँ ही निमित्त बनती हैं। इसलिए आह्वान भी शक्तियों का ज्यादा हो रहा है। तो अब शक्तियों में रहम के संस्कार इमर्ज होने चाहिएं । अभी सबके अन्दर रहम के संस्कार इमर्ज नहीं हैं, मर्ज हैं। जैसे बाप चारों ओर चक्कर लगाते हैं, वैसे आप भी भक्तों के चारों ओर चक्कर लगाती हो? कभी सैर करने जाती हो? आवाज सुनने में आती है, तो कशिश नहीं होती है? बाप के साथ-साथ शक्तियों को भी पार्ट बजाना है, जैसे शक्तियों का गायन है कि अन्त:वाहक शरीर द्वारा चक्कर लगाती थीं, वैसे बाप भी अव्यक्त रूप में चक्कर लगाते हैं। अन्त:वाहक अर्थात् अव्यक्त फरिश्ते रूप में सैर करना। यह भी प्रैक्टिस चाहिए और यह अनुभव होंगे।

जैसे साइन्स के यन्त्र दूरबीन द्वारा दूर की सीन को नजदीक में देखते हैं, ऐसे ही याद के नेत्र द्वारा अपने फरिश्तेपन की स्टेज द्वारा दूर का दृश्य भी ऐसे ही अनुभव करेंगे, जैसे साकार नेत्रों द्वारा कोई दृश्य देख आये। बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देंगे अर्थात् अनुभव होगा। साइन्स का मूल आधार है लाइट। लाइट के आधार से साइन्स का जलवा है, लाइट की ही शक्ति है। ऐसे ही साइलेन्स की शक्ति का आधार है डिवाइन इनसाइट। इन द्वारा साइलेन्स की शक्ति के बहुत वन्डरफुल अनुभव कर सकते हो। यह भी अनुभव होंगे। जैसे स्थूल साधन द्वारा सैर कर सकते हैं, वैसे ही जब चाहों, जहाँ चाहो वहाँ का अनुभव कर सकते हो।

 न सिर्फ इतना, जो सिर्फ आपको अनुभव हो लेकिन जहाँ आप पहऊँचो उन्हों को भी अनुभव होगा कि आज जैसे प्रैक्टिकल मिलन हुआ। यह है सफलतामूर्त की सिद्धि। वह तो रिवाजी आत्माओं को भी सिद्धि प्राप्त होती है एक ही समय अनेक स्थानों पर अपना रूप प्रकट कर सकते और अनुभव करा सकते हैं। वह तो अल्प काल की सिद्धि है, लेकिन यह है ज्ञान-युक्त सिद्धि। ऐसे अनुभव भी बहुत होंगे। आगे चलकर कई नई बातें भी तो होगी ना। जैसे शुरू में घर बैठे ब्रह्मा रूप का साक्षात्कार होता था जैसे कि प्रैक्टिकल कोई बोल रहा है, इशारा कर रहा है, ऐसे ही अन्त में भी निमित्त बनी हुई शक्ति सेना का अनुभव होगा।

 सभी महारथियों का संकल्प है कि अब कुछ नया होना चाहिए तो ऐसी-ऐसी नई रंगत अब होती जायेंगी। लेकिन इसमें एक तो बहुत हल्कापन चाहिये, किसी भी प्रकार का बुद्धि पर बोझ न हो और दूसरी सारी दिनचर्या बाप समान हो, तब ब्रह्मा बाप समान आदि से अन्त के दृश्य का अनुभव कर सकते हो। समझा? अब महारथियों को क्या करना है? सिर्फ योग नहीं, सेवा का रूप परिवर्तन करना है। महारथियों का योग वा याद अब स्वयं प्रति नहीं लेकिन सेवा प्रति हो, तब तो महादानी और महाज्ञानी कहे जायेंगे। अच्छा!

 समय की समाप्ति की निशानी क्या होगी? जब सारे संगठन की एक आवाज, एक ही ललकार हो कि हम विजयी है, विजय हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है वा विजय हमारे गले का हार है। ऐसा प्रैक्टिकल में अनुभव होगा। सिर्फ कहने मात्र नहीं, लेकिन यह नशा रहे, सदा सामने दिखाई दे। ऐसे विजय का निशाना दिखाई देता है? अच्छा। ओम् शान्ति।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सदा विशालबुद्दी भव !