रिवाइज कोर्स मुरली 19-09-1975  

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

शक्तियों एवं पाण्डवों की विशेषताएँ

सभी आत्माओं की जन्मपत्री जानने वाले, ज्ञान-सागर त्रिकालदर्शी परमात्मा शिव ने बताया -

आज अमृतवेले सर्व सेवा-स्थानों का सैर किया। वह सैर का समाचार सुनाते हैं। ‘‘क्या देखा-हर एक रूहानी बच्चे रूह को राहत देने के लिए, मिलन मनाने के लिए, रूह-रूहान करने के लिए व अपने दिल की बातें दिलाराम बाप के आगे (दिलाराम अर्थात् दिल को आराम देने वाला) रखते हुए अपने को डबल लाइट का वरदान दे भी रहे थे और ले भी रहे थे। कोई-कोई बच्चे विश्व-कल्याणी स्वरूप में स्थित हो बाप द्वारा मिले हुए सर्व शक्तियों का वरदान व महादान अनेक आत्माओं के प्रति दे रहे थे। तीन प्रकार की रिजल्ट देखी। एक थे लेने वाले, दूसरे थे मिलन मनाने वाले और तीसरे थे लेकर देने वाले अर्थात् कमाई करने वाले। ऐसे तीन प्रकार के बच्चों को चारों ओर देखा।’’

यह सब देखते हुए इसके बाद गॉडली स्टुडेण्ट के रूप में देखा - हर एक स्टुडेन्ट के रूप में गॉडली नॉलेज पढ़ने के लिए उमंग और उत्साह से अपने-अपने रूहानी विश्व-विद्यालय की ओर आ रहे हैं। नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सब अपनी पढ़ाई में लगे हुए थे। - हर एक सेवा केन्द्र की रूहानी रौनक अपनी-अपनी थी। उसमें भी तीन प्रकार के देखे। एक थे सिर्फ सुनने वाले अर्थात् सुन-सुन कर हर्षित होने वाले, दूसरे थे सुनकर समाने वाले और तीसरे थे बाप समान नॉलेजफुल बनकर औरों को बनाने वाले। यह सब देखते हुए फिर तीसरी स्टेज देखी - वह थी कर्मयोगी की स्टेज। तीसरी स्टेज में क्या देखा? एक थे कमल पुष्प, दूसरे थे रूहानी गुलाब और तीसरे थे वैरायटी प्रकार के फूल।

उन वैरायटी फूलों में भी मैजॉरिटी सूर्यमुखी थे। जिस समय ज्ञानसूर्य के सम्मुख थे तो खिले हुए थे और कभी फिर ज्ञानसूर्य बाप से किनारा कर लेने के कारण फूलों के बजाय कलियाँ बन जाते थे अर्थात् रूप और रंग बदल जाता था। कमल-पुष्प क्या करते थे? सर्व कार्य करते हुए, सर्व सम्बन्धों के सम्पर्क में आते हुए न्यारे और साथ-साथ बाप के प्यारे थे। वायुमण्डल व आसुरी संग अनेक प्रकार की वृत्ति वाली आत्माओं के वाइब्रेशन्स के बीच कर्म करते हुए भी कर्म और योग दोनों में समान स्थिति में स्थित थे। अनेक प्रकार की हलचल में भी अचल थे। लेकिन ऐसी आत्मायें कितनी थी? 25% । उसमें भी मैजॉरिटी शक्तियाँ थी।

 पाण्डव सोच रहे हैं कि क्यों? पाण्डवों की विशेषता भी सुनाते हैं, थोड़ा समय सिर्फ धैर्य रखो। पाण्डव-पति के हमजिन्स पाण्डव की भी महिमा है। कमल-पुष्प के आगे रूहानी गुलाब वह कौन थे? रूहानी गुलाब जो सदा अपने रूहानियत की स्थिति में स्थित रहते हुए सर्व को भी रूहानि्ायत की दृष्टि से देखने वाले, सदा मस्तक मणि को देखने वाले हैं। साथ-साथ अपनी रूहानियत की स्थिति से सदा अर्थात् हर समय सर्व आत्माओं को अपनी स्मृति, दृष्टि और वृत्ति से रूहानी बनाने के शुभ संकल्पों में रहने वाले अर्थात् हर समय योगी तू आत्मा सेवाधारी आत्मा हो कर चलने वाले - ऐसे रूहानी गुलाब चारों ओर की फुलवारी के बीच बहुत थोड़े कहीं-कहीं देखे?

यह परसेन्टेज कम थी। 10%  वैरायटी फूलों के अन्दर एक तो सूर्यमुखी सुनाया दूसरी क्वॉलिटी हर मौसम के बड़े सुन्दर रंगबिरंगे फूल होते हैं, उन पर मौसम की रंग-रूप की रौनक बड़ी अच्छी होती है। बगीचे की शो बढ़ा देते हैं। ऐसे मौसम के रंग बिरंगे फूलों के दृश्य बहुत देखे। रंग और रूप- यहाँ भी रूप ब्रह्माकुमारी और ब्रह्माकुमार का है, रंग ज्ञान का लगा हुआ है। तो रंग भी और रूप भी है, लेकिन रूहानियत कम। रूहानी दृष्टि और वृत्ति की सुगन्ध न के बराबर है। अभी-अभी मौसम के अनुसार अर्थात् थोड़े समय के लिये खिले हुए होंगे और थोड़े समय बाद मुरझाए हुए नज़र आयेंगे। सदा एकरस नहीं। ऐसे रंग-बिरंगे फूल जो मौसम में ही खिलते हैं, मैजॉरिटी में थे।

वर्तमान समय रूहानी दृष्टि और वृत्ति के अभ्यास की बहुत आवश्यकता है। 75%  इस रूहानियत के अभ्यास में कमज़ोर हैं। मैजॉरिटी किसी-न-किसी प्रकार के प्रकृति के आकर्षण के वशीभूत हो ही जाते हैं। व्यक्ति व वैभव कभी-न-कभी अपने वश कर लेता है। उसमें भी मन्सा संकल्प के चक्कर में खूब परेशान होने वाले हैं। इस परेशानी के कारण स्वयं से दिलशिकस्त भी हो जाते हैं। वास्तव में ब्राह्मण आत्मा अगर संकल्प में विकारी दृष्टि और वृत्ति रखती है अर्थात् इस चमड़ी को देखती है - चमड़ी अर्थात् जिस्म द्वारा विकारी भावना रखते हैं - तो ऐसी भावना रखने वाले भी ‘महापापी’ की लिस्ट में आ जाते हैं। ब्राह्मण जीवन में बड़े से बड़ा पाप व दाग इस विकारी भावना का गिना जाता है।

ब्राह्मण अर्थात् दिव्य-बुद्धि के वरदान वाले। दिव्य नेत्र के वरदान वाले, ऐसे दिव्य बुद्धि और दिव्य नेत्र वाले बुद्धि में संकल्प द्वारा दिव्य नेत्र में एक सेकेण्ड के लिए भी नजर द्वारा इस चमड़ी को व जिस्म को टच भी नहीं कर सकते। दिव्य बुद्धि का, दिव्य नेत्र का शुद्ध आहार और व्यवहार शुद्ध संकल्प हैं। अगर अपने शुद्ध संकल्प रूपी आधार अर्थात् भोजन को छोड़ अशुद्ध आहार स्वीकार करते हो अर्थात् संकल्प के वशीभूत हो जाते हैं तो ऐसे मलेच्छ भोजन वाले मलेच्छ आत्मा कहलायेंगे अर्थात् महापापी, आत्मघाती कहलायेंगे। इसलिए इस महापाप के संकल्प से भी स्वयं को सदा बचाने का प्रयत्न करो। नहीं तो इस महापाप का दण्ड बहुत कड़े रूप में भोगना पड़ेगा। इसलिए दिव्य बुद्धि और सदा शुद्ध आहारी बनो। समझा?

पाण्डवों की विशेषता क्या देखी? सेवा प्रति हार्ड वर्कर (परिश्रमी) प्लैनिंग (नियोजन) बुद्धि अथक बन सेवा की स्टेज पर हर समय एवर रेडी हैं। सेवा के सब्जेक्ट में मैदान पर आने वाले मैजारिटी पाण्डव हैं, इस विशेषता में पाण्डव आगे हैं और इसी सेवा के रिटर्न में हिम्मत और हुल्लास अनुभव करते चल रहे हैं। पाण्डव वातावरण के विकारी वायब्रेशन के बीच ज्यादा रहते हैं, इसलिए ऐसे वातावरण में रहते हुए ‘न्यारे और प्यारे’ रहते हैं, तो उनको इस सफलता में शक्तियों से एकस्ट्रा मार्क्स मिलती हैं। लेकिन इस लॉटरी को और ज्यादा कार्य में लाओ व ऐसा गोल्डन चान्स और ज्यादा लेना। सुना आज के सैर का समाचार। अच्छा।

ऐसे इशारे से समझने वाले समझदार, स्थूल-सूक्ष्म शुद्ध आहारी, सदा श्रेष्ठ व्यवहारी, हर संकल्प में विश्व-कल्याण की भावना रखने वाले विश्व-कल्याणी आत्माओं के प्रति बापदादा की याद-प्यार और नमस्ते।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

मास्टर सदगुरु भव!