रिवाइज कोर्स मुरली 19-10-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
माया को ललकारने वाला लश्कर ही अपना झण्डा बुलन्द कर सकेगा
हिम्मत और हुल्लास भरकर निर्भय बनाने वाले, पाण्डवों के अहिंसक लश्कर के प्रति शिव बाबा बोले: -
आज सुना कि ब्रह्मा बाप क्या चाहते हैं? - लश्कर तैयार चाहते हैं - तो साकार में निमित्त बनी हुई आत्माओं को अब लश्कर को तैयार करने में तीव्रगति चाहिए। तीव्रगति अर्थात् क्विक होना चाहिए। क्विक अर्थात् सोचा और किया। संकल्प और कर्म में समानता आ जाय, प्लैन और प्रैक्टिकल में समानता हो - ऐसी गति है? या प्लैन बहुत बनाते - प्रैक्टिकल कम होता है? संकल्प बहुत करते हैं लेकिन कर्म में कम आते हैं? संकल्प और कर्म में समानता ही सम्पूर्णता की निशानी है। इस निशानी से ही अपने निशाने को जज कर सकेंगे कि कितने समीप हैं? तो अपना ऐसा झुण्ड तैयार करो जिसको देखते हुए और भी हिम्मत हुल्लास में आकर फॉलो करें। जैसे साकार बाप का सैम्पल पुरूषार्थियों के पुरूषार्थ को सिम्पल कर देता है।
ऐसे सैम्पल तैयार करो जिसको देखकर अन्य का पुरूषार्थ सिम्पल हो जाय - ऐसा झुण्ड तैयार है? ऐसी शक्तियों की ललकार करने वाला झुण्ड हो जो माया को भी ललकार करने वाला हो, चाहे वह माया किसी प्रकार की भी सत्ता वालों में ही क्यों न हो। जुआ में हार तो उन्हों की है ही - कल्प पहले ही यादगार में भी जुआ दिखाया है लेकिन यथार्थ रूप नहीं दिखाया है। कौरव अपनी जुआ में लगे हुए हैं और धर्म सत्ता वाले अपनी जुआ में लगे हुए हैं, जुआ में हो उन्हों की हार होनी है और पाण्डवों का झण्डा बुलन्द होना है - ऐसी ललकार करने वाले निर्भय, माया के तूफानों से भी नहीं डरने वाले, निरन्तर विजय का चैलेन्ज करने वाली इस सेना की इन्चार्ज बने तब और भी फॉलो करेंगे। अच्छा!
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।