रिवाइज कोर्स मुरली 21-10-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
बेहद की वैराग्य-वृत्ति ही विश्व परिवर्तन का आधार
नये विश्व के परिवर्तक, सर्व आत्माओं के परमप्रिय शिव बाबा ने नव-विश्व-निर्माण के आधारमूर्त्त बच्चों से मधुर मुलाकात करते हुए ये अनमोल महावाक्य उच्चारे:-
अभी नयी दुनिया लाने के निमित्त बने हुए हो? नई दुनिया कब आयेगी, यह सबको इन्तज़ार है। सबके अन्दर संकल्प है की तिथि तारीख का मालूम पड़ जाये कि नई दुनिया कब आने वाली है? तिथि तारीख मालूम पड़ेगा? मालूम होना तो ज़रूर चाहिए जबकि त्रिकालदर्शी हैं अर्थात् तीनों कालों को जानने वाले हैं तो भविष्य का जानना भी ऐसे ही होगा जैसे वर्तमान को जानना और भविष्य को जानने का आधार भी वर्तमान होगा। नई दुनिया में आने वाले भी तो ब्राह्मण ही हैं। तो नई दुनिया में जो आने वाले हैं उन्हों की वर्तमान से ही भविष्य की तिथि तारीख ऑटोमेटिकली सिद्ध हो ही जायेगी। जब नई दुनिया कहते हैं तो नई दुनिया की अधिकारी आत्माओं में भी नयापन होना चाहिए। कोई भी पुराना संस्कार व संकल्प व बोल व कोई एक्टिविटी पुरानेपन की न हो। जैसे अभी भी एक-दो में पुरानी चाल देख कर कहते हो ना कि यह इनकी पुरानी चाल है अथवा अब तक यह पुरानी आदत व चाल इनकी गई नहीं है। किसी भी बात में पुरानापन न हो। संकल्प भी पुराने स्वभाव व संस्कार के वश न हो। जब मैजारिटी व मुख्य आत्माओं में ऐसी नवीनता दिखाई दे तब नई दुनिया के आने की तिथि तारीख स्पष्ट हो जायेगी। जो निमित्त हैं उन मुख्य आत्माओं में नवीनता का और परिवर्तन का अनुभव होगा। उन्हों के परिवर्तन के आधार पर विश्वपरिवर्त न की तारीख प्रत्यक्ष होगी।
विश्व-परिवर्तन होने के पहले विश्व की सर्व-आत्माओं में वैराग्य वृत्ति होगी। और वैराग्य वृत्ति से ही बाप के परिचय को धारण कर सकेंगे कि हाँ हम आत्माओं का बाप आ चुका है। तो जैसे विश्व की आत्माओं में वैराग्य-वृत्ति ही परिवर्तन का आधार होगा वैसे ही जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हों में भी सम्पूर्ण परिवर्तन का आधार बेहद का वैराग्य बनेगा। तो संगठन में भी बेहद के वैराग्य-वृत्ति को लाने का पुरूषार्थ करो। एक-दो के साथी व सहयोगी बनो। जब वैराग्य-वृत्ति इमर्ज रूप में होगी तो पुराने संस्कार व स्वभाव बहुत जल्दी और सहज ही वैराग्य-वृत्ति के अन्दर मर्ज हो जायेंगे। सब सोचते हैं ना कि क्या होगा जो पुराना पन सब भूल जायेगा। मनुष्य को जब हद का वैराग्य होता है तो पुराने आकर्षण के संस्कार और स्वभाव आदि को समाप्त करने में वैराग्य-वृत्ति ही आधार बनेगी। इस से ही चेन्ज आयेगी।
अब ऐसी धरनी बनाओ और ऐसे बेहद के वैरागियों का संगठन बनाओ, जिन्हों के वाइब्रेशन्स और वायुमण्डल द्वारा अन्य आत्माओं में भी वह संस्कार इमर्ज हो जायें। जैसे सेवाधारियों का संगठन होता है वैसे बेहद के वैरागियों का संगठन मजबूत होना चाहिए जिसको देखते ही अन्य आत्माओं को भी ऐसा वायब्रेशन आये। एक तरफ बेहद का वैराग्य होगा दूसरी तरफ बाप के समान बाप के लव में लवलीन होंगे, तब ही बेहद का वैराग्य आयेगा। एक सेकेण्ड भी और एक संकल्प भी इस लवलीन अवस्था से नीचे नहीं आयेंगे। ऐसे लवली बाप के लवली बच्चों का संगठन हो। उनको कहेंगे लवली संगठन। एक तरफ अति लव दूसरी तरफ बेहद का वैराग्य दोनों का संगठन साथ-साथ समान दिखाई देगा, ऐसा संगठन बनाओ तो वह तारीख स्पष्ट दिखाई देगी। यह संगठन ही तारीख को प्रसिद्ध करेगा।
इस मुरली का सार
1. नई दुनिया की अधिकारी आत्माओं में कोई भी पुराना संस्कार, संकल्प, बोल व ऐक्टिविटी पुरानेपन की न हो तब ही नयी दुनिया आयेगी।
2. जैसे विश्व की आत्माओं में वैराग्य वृत्ति ही परिवर्तन का आधार होगी वैसे ही जो निमित्त बनी हुई आत्मायें हैं उन्हीं में भी सम्पूर्ण परिवर्तन का आधार ‘बेहद का वैराग्य’ बनेंगा।
3. एक तरफ अति लव और दूसरी तरफ बेहद का वैराग्य दोनों का संगठन साथ-साथ समान दिखाई देगा तो ऐसा संगठन ही नयी दुनिया की तिथि तारीख को प्रसिद्ध करेगा।
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।