रिवाइज कोर्स मुरली   22-09-1975

                                                        

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

स्वमान में स्थित होना ही सर्व खजानें और खुशी की चाबी है

आज की सभा स्वमान में स्थित रहने वाली, सर्व को स्व-भावना से देखने व हर आत्मा के प्रति शुभ कामना रखने वाली है। यह तीनों ही बातें स्वयं के प्रति स्वमान, औरों के प्रति स्व की भावना और सदा शुभ कामना ऐसी स्थिति सदा सहज रहती है? सहज उसमें स्थित रहना और मेहनत से उस स्थिति में स्थित होना इसका फर्क तो जानते ही हो। वर्तमान समय यह स्थिति सदा सहज और स्वत: होनी चाहिए। अपने को चेक करो कि सदा और स्वत: ही वह स्थिति क्यों नहीं हो पाती? इसका मूल कारण है कि स्वमान में स्थित नहीं रहते। स्वमान एक शब्द प्रैक्टिकल जीवन में धारण हो जाय तो सहज ही सम्पूर्णता को पा सकते हैं। स्वमान में स्थित होने से स्वत: ही सर्व प्रति स्व की भावना व शुभ कामना हो जायेगी।

 यह स्वमान में स्थित होना पहला पाठ है। स्वमान में स्थित होना ही जीवन की पहेली को हल करने का साधन है। आदि से लेकर अभी तक इस पहेली को हल करने में ही लगे हुए हो कि “मैं कौन हूँ।” शुरू में जब स्थापना का कार्य आरम्भ हुआ था तो सबको क्या सुनाते थे “हू एम आई” अर्थात् मैं कौन हूँ? यह बात इतनी पक्की स्मृति में थी कि सब लोग जानते थे कि इन सबका एक ही पाठ है कि व्हाट एम आई? वही एक पाठ अब तक चल रहा है। इसलिए इसको पहेली कहा जाता है। इस इतनी-सी छोटी पहेली ने ऊंचे-से-ऊंचे ब्राह्मणों को भी पराजित कर दिया है। पज्रल (व्याकुल, भ्रमित) कर दिया है अर्थात् सम्पूर्ण रीति से हल नहीं कर पाये हैं।

स्वमान के बजाय देह अभिमान व अन्य आत्माओं के प्रति अभिमान की दृष्टि हो जाती है तो क्या कहें? क्या यह पहेली हल कर ली है अथवा अभी तक भी हल कर ही रहे हैं। “मैं कौन हूँ” इस एक शब्द के उत्तर में सारा ज्ञान समाया हुआ है। यह एक शब्द ही खुशी के खजाने, सर्व शक्तियों के खजाने, ज्ञान धन के खजाने, श्वांस और समय के खजाने की चाबी है। चाबी तो मिल गई है ना? जिस दिन आपका जन्म हुआ तो सर्व ब्राह्मणों को बर्थ डे पर गिफ्ट (जन्म दिन की सौगात) मिलती है ना? तो यह बर्थ डे की गिफ्ट जो बाप ने दी है, उसको सदा यूज (काम में लाना) करते रहो। तो सर्व खजानों से सम्पन्न सदा के लिये बन सकते हो।

 ऐसे सर्व खजानों से सम्पन्न आत्मा के दिल के खुशी की उमंगों में हर समय कौन सा आवाज निकलता है? मुख का आवाज नहीं, लेकिन दिल का आवाज क्या निकलता है? जो शुरू में ब्रह्मा बाप के दिल का आवाज था - कौन सा? वाह रे मैं! जैसे औरों की वाह-वाह की जाती है ना - वैसे वाह रे मैं! यह स्वमान के शब्द हैं, न कि देह-अभिमान के। तो मैं कौन हूँ, की चाबी को या तो लगाना नहीं आता या फिर रखना नहीं आता, इसलिये समय पर याद नहीं आता। इस चाबी को चुराने के लिए माया भी चारों ओर घूमती है कि कहीं यह एक सेकेण्ड भी अलबेलेपन के झुटके में आयें तो यह चाबी चोरी कर लें। जैसे आजकल के डाकू बेहोश कर देते हैं वैसे ही माया भी स्वमान का होश अर्थात् स्मृति को गायब कर बेहोश बना देती है।

 इसलिए सदा स्वमान के होश में रहो। अमृतवेले स्वयं को ही स्वयं यह पाठ पक्का कराओ अर्थात् रिवाइज कराओ कि मैं कौन हूँ? अमृतवेले से ही इस चाबी को अपने कार्य में लगाओ। और अनेक प्रकार के खजाने जो सुनाये हैं उनको बार-बार देखो कि क्या-क्या खजाना मिला है और समय प्रमाण इन सब खजानों को अपने जीवन में यूज करो। सिर्फ बैंक बैलेन्स नहीं बनाओ लेकिन उसे काम में लगाओ। तो सहज ही जैसी स्मृति वैसी स्थिति हो जायेगी। जैसे कल्प पहले के यादगार शास्त्र में लिखा हुआ है बाप के लिये कहते हैं कि मैं कौन हूँ, तो सर्व में श्रेष्ठ का वर्णन किया है। ऐसे ही जैसे बाप का, ऊंचे-से-ऊंचे भगवान का गायन है तो भगवान बाप क्या गायन करते हैं - ऊंचे-ते-ऊंचे बच्चे।

 ऐसे अपने ऊंच अर्थात् श्रेष्ठ स्वमान को सदा याद रखो कि ऊंचे बाप के भी बालक सो मालिक हैं। स्वयं बाप हम श्रेष्ठ आत्माओं की माला सिमरण करते हैं। बाप की महिमा आत्मायें करती हैं लेकिन आप श्रेष्ठ आत्माओं की महिमा स्वयं बाप करते हैं। सर्व श्रेष्ठ आत्माओं के सहयोग के बिना तो बाप भी कुछ नहीं कर सकता। तो आप ऐसे श्रेष्ठ स्वमान वाले हो। बाप को सर्व-सम्बन्धों से प्रख्यात करने वाले व बाप का परिचय देने वाली आप श्रेष्ठ आत्मायें हो। हर कल्प में ऊंच ते ऊंच बाप के साथ उंच से ऊंच पार्ट बजाने वाली हो। सबसे बड़े स्वमान की बात तो यह है कि जो संगमयुग पर बाप को भी अपने स्नेह और सम्बन्ध की डोर में बांधने वाले हो।

 बाप को भी साकार में आप समान बनाने वाले हो। बाप निराकार रूप में आप समान बनाते हैं और आप निराकार को साकार में आने में उसे आप समान बनाते हो और आप स्वयं बाप की सर्व महिमा के समान बनते हो। इसलिये बाप भी कहते हैं - मास्टर हो। तो अब समझा कि मैं कौन हूँ? जो हूँ, जैसा हूँ, वैसा ही अपने को जानने से सदा स्वमान में रहेंगे और देह-अभीमान से स्वत: ही परे रहेंगे। स्वमान के आगे देह-अभिमान आ ही नहीं सकता। तो अपने बर्थ डे की गिफ्ट को सदा अपने पास सम्भाल कर रखो।

अलबेलेपन में भूल न जाओ। इससे ही स्वत: सहज और सदा सर्व प्रति स्व की भावना और शुभ कामना रहेगी। समझा? पहेली तो सहज है ना? समझदार के लिये सहज है और अलबेली आत्माओं के लिये गुह्य है। आप सब तो बेहद के समझदार बच्चे हो ना? सिर्फ समझदार नहीं लेकिन बेहद के समझदार बच्चे हो। अच्छा!

ऐसे विशाल बुद्धि सर्व में बेहद बुद्धि को धारण करने वाले, सर्व आत्माओं को अनेक प्रकार के हदों से निकालने वाले ऐसे बेहद के बुद्धिमान, बेहद समझदार, बेहद के वैराग्य वृत्ति वाले, सदा बेहद की स्थिति और स्थान में रहने वाले ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्माओं को बेहद के बाप का याद-प्यार और नमस्ते।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सदा धनवान भव!