रिवाइज कोर्स मुरली 23-01-1975 |
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
स्वमान की सीट पर सेट होकर कर्म करने वाला ही महान
जैसे बापदादा के महत्व को अच्छी तरह से जानते हो वैसे ही इस संगमयुगी ब्राह्मण जन्म को व श्रेष्ठ आत्मा के अपने श्रेष्ठ पार्ट को इतना ही अच्छी रीति से जानते हो? जैसे बाप महान् है, वैसे ही बाप के साथ जिन आत्माओं का हर कदम व हर चरित्र के साथ सम्बन्ध व पार्ट है, वह भी महान् है। इस महानता को अच्छी रीति से जानते हुए हर कदम उठाने से हर कदम में पद्मों की प्राप्ति स्वत: ही हो जाती है क्योंकि सारा आधार स्मृति पर है। स्मृति सदा पॉवरफुल और महान् रहती है या कभी महान् और कभी साधारण रहती है? जो जैसा होता है, वैसा ही वह सदा स्वयं को स्वत: ही समझ कर चलता है। वह कभी स्मृति तथा कभी विस्मृति में नहीं आता।
ऐसे ही जब आप उच्च ब्राह्मण हो, विश्व में सर्वश्रेष्ठ आत्मायें हो और विशेष पार्टधारी हो, फिर अपने इस अन्तिम जन्म के इस रूप की, अपनी पोजीशन की व अपने ऑक्युपेशन की स्मृति कभी विशेष और कभी साधारण क्यों रहती है? बार-बार उतरना और चढ़ना क्यों होता है? क्या इसके कारण को समझते हो? जबकि निजी स्वरूप है और जन्म ही महान् है, तो अपने जीवन की और जन्म की महानता को भूलते क्यों हो? भूलना तब होता है जबकि पार्ट बजाने के लिये टेम्परेरी (अस्थाई) रूप बनाया जाता है। निजी रूप न होने के कारण बार-बार स्मृति-विस्मृति होती रहती है। यहाँ क्यों भूलना होता है? देह-अभिमान के कारण। देह अभिमान क्यों आता है?
इन सब कारणों को तो बहुत समय से जानते हो न? जानते हुए भी निवारण नहीं कर पाते हो। इसका कारण शक्ति की कमी है या दृढ़ता नहीं है। यह भी बहुत समय से जानते हो, फिर भी निवारण क्यों नहीं कर पाते? वही बात बार-बार अनुभव में आने के कारण परिवर्तन करना तो सहज और सदा काल के लिए होना चाहिए न। जैसे लौकिक रीति में मालूम पड़ जाता है कि इस बात के कारण नुकसान होता है, रिजल्ट अच्छा नहीं निकलता है तो एक बार धोखा खाने के बाद स्वत: ही सम्भल जाते हैं, न कि बार-बार धोखा खाते हैं? देह-अभिमान के कारण अथवा किसी भी कमज़ोरी के वशीभूत होने से परिणाम क्या होता है? - इस बात के अनेक बार अनुभवी हो चुके हो।
अनुभवी होने के बाद फिर भी धोखा खाते हो, तो ऐसे को क्या कहा जायेगा? इससे सिद्ध होता है कि अपनी महानता को स्वयं ही सदा जानकर नहीं चलते हो। अपनी महानता को भूलते क्यों हो? कारण? क्योंकि विघ्न-विनाशक, सर्व-परिस्थितियों को मिटाने वाले, स्व-स्थिति व पोजीशन के श्रेष्ठ स्थान और स्वमान की सीट जो बापदादा ने संगमयुग पर दी हुई है उस सीट पर सेट नहीं होते हो। अपनी सीट को छोड़कर बार-बार नीचे आ जाते हो। सीट पर रहने से स्वमान भी स्वत: स्मृति में रहता है। लौकिक रीति भी कोई साधारण आत्मा को सीट मिल जाती है तो स्वमान ही बढ़ जाता है, उस नशे में स्वत: ही स्थित हो जाते हैं। ऐसे ही सदा अपनी सीट पर रहो तो स्वमान निरन्तर स्मृति में रहे, समझा?
सीट के नीचे आना अर्थात् स्मृति से नीचे विस्मृति में आना। ऊंची सीट पर सेट रहने की चेकिंग करो। सीट पर सेट होने से स्वत: ही वह संस्कार और कर्म परिवर्तन में आ ही जाते हैं। समझा! कमजोरी के बोल ब्राह्मणों की भाषा ही नहीं। शूद्रपन की भाषा को क्यों यूज़ (प्रयोग) करते हो? अपने देश और अपनी भाषा का नशा रहता है ना। अपनी भाषा को भूल दूसरे की भाषा क्यों बोलते हो? तो अब यह परिवर्तन करो। पहले चेक करो, फिर बोलो। सीट पर सेट होकर के फिर संकल्प व कर्म करो। इस सीट पर रहने से स्वत: ही महानता का वरदान प्राप्त हो जाता है। तो वरदानी सीट को छोड़कर के मेहनत क्यों करते हो? मेहनत करते-करते फिर थक भी जाते हो और दिलशिकस्त हो जाते हो। इसलिये अब सहज साधन अपनाओ। अच्छा।
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।