रिवाइज कोर्स मुरली  23-10-1975

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

इन्तज़ार को छोड़कर इन्तज़ाम करो!

आज बापदादा विश्व की तकदीर बनाने वाले तकदीरवान बच्चों की तस्वीर देख रहे हैं। किस-किस आत्मा में कौन-कौन सी तकदीर की लकीरें दिखाई देती हैं और कौन-कौनसी अब स्पष्ट होने वाली हैं? हर एक के तकदीर की लकीर अपनी-अपनी दिखाई दे रही है। तकदीर की रेखाओं में मुख्य चार सब्जेक्ट्स की चार रेखायें दिखाई देती हैं। बहुत थोड़े बच्चे हैं जिनकी चारों ही रेखायें स्पष्ट हैं अर्थात् चारों ही सब्जेक्ट्स में तदबीर द्वारा अपनी ऊंची तकदीर बनाई है। इस प्रमाण पास विद् ऑनर्स और फर्स्ट क्लास अर्थात् फर्स्ट डिवीज़न में ऐसे तकदीरवान ही आयेंगे जिन्हों की चारों ही तकदीर की लकीरें स्पष्ट हैं। पास विद् ऑनर्स के तकदीर की लकीरें चारों ही ओर एक समान चमकती हुई स्पष्ट दिखाई देती हैं, जो हैं अष्ट रत्न।

 दूसरे नम्बर में फर्स्ट डिवीज़न वाले सौ रत्न, जिनकी चारों ही लकीरें दिखाई देती हैं लेकिन समान स्पष्ट रूप नहीं हैं। कोई ज्यादा तेज हैं, कोई कुछ कम। सेकेण्ड डिवीज़न सोलह हजार। उन सोलह हजार में से पहले दो तीन हजार की रेखाओं में चार सब्जेक्ट्स में से तीन सब्जेक्ट्स 50 प्रतिशत मार्क्स में पास हैं और एक सब्जेक्ट्स में 25 प्रतिशत में पास हैं अर्थात् ना के बराबर हैं। ऐसे सर्व तकदीरवानों की तकदीर देखी। आज बापदादा चारों तरफ के ब्राह्मण बच्चों की जन्म-पत्री देख रहे थे। जन्म-पत्री देखते वर्तमान समय मैजॉरिटी के अन्दर एक विशेष संकल्प चलता हुआ देखा। वह क्या? विश्व की आधारमूर्त आत्मायें भी कोई आधार पर खड़ी हुई देखी।

 वह आधार क्या? दुनिया के विनाशकारी साधनों को देखते हैं वा प्रकृति की हलचल कब होती है, कहाँ होती है, होती है या नहीं होती है - इस आधार पर आधारमूर्त को खड़े हुए देखा। ऐसे आधार पर ठहरने वाले बच्चों से बापदादा का प्रश्न है कि पहले स्थापना करने वाले विनाश के आधार पर रहेंगे तो स्थापना करने वालों का भविष्य क्या होगा? विनाश ज्वाला प्रज्जवलित करने के आधारमूर्त कौन? प्रकृति का परिवर्तन करने वाले कौन? प्रकृति व विनाश के साधनों के आधार पर खड़े हुए पुरुषों से उत्तम पुरुषोत्तम हो सकते हैं अथवा पुरुषोत्तम के ऑर्डर पर अर्थात् श्रेष्ठ संकल्प के आधार पर, सर्व आधारमूर्तों के सम्पूर्ण बनने के आधार पर विनाशकारी साधन व प्रकृति अपना कार्य करेगी?

ऑर्डर देने वाला कौन? अधिकारी कौन - प्रकृति या पुरुषोत्तम? आधारमूर्तों का किसी आधार पर रहना तो उनको अधिकारी कहेंगे? तो क्या देखा? इन्तज़ाम करने वाले इन्तज़ार में हैं। इन्तजाम करने में अलबेलापन और इन्तजार करने में अलर्ट (चौकन्ने) हैं। इसको देखते हुए बापदादा को हँसी भी आई और रहम भी आया, क्यों? माया की चतुराई को अब तक बच्चे परख नहीं सके हैं। इन्तज़ार की मीठी नींद में माया सुला रही है और बच्चे आधा कल्प के सोने के संस्कार-वश होकर कोई तो सेकण्ड का झुटका खाते हैं और फिर होश में आते हैं, फिर इन्तजाम करने के जोश में आ जाते हैं और कोई तो कुछ मिनटों के लिये सो भी जाते हैं फिर जोश और होश में आते हैं।

तीसरे प्रकार के बच्चे काफी आराम से सोते-सोते बीच-बीच में आंख खोलकर देखते रहते हैं कि अभी कुछ हुआ, अभी तक तो कुछ नहीं हुआ है! जब होगा तब देखा जायेगा। यह दृश्य देख क्या हँसी नहीं आयेगी? तीसरा नेत्र मिलते हुए भी माया को परख नहीं सकते, इसलिये माया को अच्छी तरह से परखने के लिये परख-शक्ति को विशेष रूप से अपने में धारण करो। दो मास हैं या चार मास हैं - यह समय की गिनती नहीं करो लेकिन स्वयं को समर्थ बनाओ, होगा अथवा नहीं होगा, क्या होगा और कब होगा? इन संकल्पों के बजाए पुरुषोत्तम स्थिति में स्थित हो संगठन को सम्पूर्ण बनाने के संकल्प के आधार से प्रकृति को ऑर्डर देने के अधिकारी बनो।

 होना तो चाहिए लेकिन पता नहीं क्या होगा, शायद होवे, दो चार मास में तो कुछ दिखाई नहीं देता है, संगमयुग चालीस वर्ष का है अथवा पचास वर्ष का है। इसी प्रकार के संकल्प भी सम्पूर्ण निश्चय के आगे बाप के व स्वयं के स्थापना के कार्य में विघ्न डालने वाला अति सूक्ष्म रूप का रॉयल संशय है। जब तक यह संशय है तब तक सम्पूर्ण विजयी नहीं बन सकते। गायन ही है निश्चय बुद्धि विजयन्ति। तो विजयी आत्मा को संशय के रॉयल रूप का संकल्प हो नहीं सकता। सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि अपने विश्व-परिवर्तन के कार्य में दिन-रात बिज़ी रहेंगे। जैसे कोई विशेष कार्य की जिम्मेवारी होती है तो दिन-रात इन्तज़ाम में लग जाते हैं, न कि इन्तज़ार करते हैं कि जब टाइम होगा तब स्टेज सजायेंगे व साधनों को अपनायेंगे।

 समय के पहले इन्तज़ाम किया जाता है। तो विश्व के परिवर्तन की जिम्मेवारी, यह भी परिवर्तन समारोह अभी मनाने का है। सर्व आत्माओं को अपने-अपने अनुसार सतोप्रधान बनाने का व बाप का परिचय देने का विशाल विश्व का सम्मेलन करना है। इसके लिये पहले से ही आप को अपनी स्थिति की स्टेज बनाने का इन्तज़ाम करना है या उस समय करोगे? जैसे स्थूल स्टेज के बिना भाषण करना व सन्देश देना नहीं हो सकता, वैसे अन्तिम समय पर स्वयं के सम्पूर्ण स्थिति की स्टेज बिना विशाल विश्व-सम्मेलन में सन्देश कैसे दे सकेंगे? अर्थात् बाप को प्रसिद्ध व प्रख्यात कैसे कर सकेंगे? तो स्टेज को पहले से तैयार करेंगे अथवा उस समय करेंगे?

इसलिए इन्तज़ार को छोड़ इन्तज़ाम में लग जाओ। यह संकल्प भी व्यर्थ संकल्प है, इस व्यर्थ को भी समर्थ में परिवर्तन करो। अधिकारी बनो। प्रकृति को ऑर्डर करने की समर्थ स्टेज को बनाओ। संगठित रूप से सर्व ब्राह्मणों के अन्दर रहम की भावना, विश्व-कल्याण की भावना, सर्व-आत्माओं को दु:खों से छुड़ाने की शुभ कामनाएं जब तक दिल से उत्पन्न नहीं होंगी तब तक विश्व-परिवर्तन रुका हुआ है। अभी हलचल में हो एक ही संकल्प में अचल और अटल नहीं हो। अंगद समान अडोल बनना अर्थात् अन्तिम घड़ी लाना। तो संगठित रूप में ऐसे एक संकल्प को अपनाओ अर्थात् दृढ़ संकल्प की इकटठी अंगुली सभी दो, तो यह कलियुगी पर्वत परिवर्तन करके गोल्डन वर्ल्ड को ला सके। समझा? क्या इन्तज़ाम करना है? अच्छा।

सदा एक संकल्प में अंगद समान अचल रहने वाले, सम्पूर्ण निश्चय बुद्धि, हर संकल्प, बोल और कर्म में सदा विजयी, ऐसे अधिकारी बच्चों को याद प्यार और नमस्ते।

(दीदी जी के साथ)

संगठन का बल अर्थात् एक ही संकल्प

रूहानी यात्री जो डबल यात्रा करने आते हैं - एक मधुबन की यात्रा, दूसरी विशेष मधुबन में रूहानी यात्रा। तो डबल यात्रा करने वाले यात्री जो भी आते हैं वह आराम से अपनी यात्रा सफल करके जाते हैं? सब सन्तुष्ट रहते हैं? गाया जाता है कि यदि दिल बड़ा है, तो जगह भी बड़ी है। स्थूल जगह भले ही कम हो लेकिन आने वालों की, स्वागत करने वालों की और सेट करने वालों की दिल बड़ी है तो जगह की कमी महसूस नहीं होगी। फिर 63 जन्मों की, की हुई यात्राओं से तो सब सेलवेशन्स संगम की यात्रा पर ज्यादा मिलती हैं। वह जड़ चित्रों की यात्रा कितनी मुश्किल होती है!

आप लोग भी तो यह देख-रेख करती हो कि हमारा संगठन एक संकल्प वाला कहाँ तक बना है? शास्त्रों में गायन है कि ब्रह्मा को संकल्प उठा कि सृष्टि रचें तो सृष्टि रची गई। यहाँ अकेले ब्रह्मा की तो बात नहीं, लेकिन ब्रह्मा सहित सब ब्राह्मणों का भी जब एक साथ यह संकल्प उठे कि अब हम सब एवररेडी हैं और नई दुनिया की स्थापना होनी ही चाहिए या होगी ही - ऐसा दृढ़ संकल्प जब ब्राह्मणों के अन्दर उत्पन्न हो, तब ही सृष्टि का परिवर्तन हो अर्थात् नई सृष्टि की रचना प्रैक्टिकल में दिखाई दे। इसमें भी संगठन का बल चाहिए। एक दो का व सिर्फ आठ का नहीं, लेकिन सारे संगठन का एक संकल्प चाहिये। संकल्प से सृष्टि रचना, इसका रहस्य इस प्रकार से है - संकल्प उत्पन्न होगा और सेकेण्ड में समाप्ति का नगाड़ा बजना शुरू हो जायेगा।

एक तरफ समाप्ति का नगाड़ा, दूसरी तरफ नई दुनिया का नज़ारा साथ-साथ दिखाई देगा। वहाँ ही विनाश की अति होगी और वहाँ ही जलमई के बीच चारों ओर विनाश में एक हिस्सा धरती और बाकी तीन हिस्सा तो जलमई होगी ना? यह जो सभी पीछे-पीछे अनेक धर्मों के कारण अनेक देश बने हैं, वह अनेक धर्म जब समाप्त होंगे तो अनेक देश भी एक सैरगाह के रूप में जल के बीच एक टापू के मुआफिक हो जायेंगे। तो एक तरफ विनाश की अति के नगाड़े होंगे, दूसरी तरफ फर्स्ट प्रिन्स (श्रीकृष्ण) के जन्म का आवाज बुलन्द होगा वह पत्ते पर नहीं आयेगा। दिखाते हैं ना जलमई के बाद पत्ते पर श्रीकृष्ण आया। तीन हिस्से जलमई में होने के कारण भारत जब परिस्तान बनता है तो उसको जलमई दिखा दिया है।

 ऐसे जलमई के बीच पहला पत्ता जो फर्स्ट आत्मा है उसके जन्म का चारों और आवाज प्रसिद्ध होगा कि फर्स्ट प्रिन्स प्रत्यक्ष हो चुका है, जन्म हो चुका है। तो वह भी अति में होगा अर्थात् जलमई के तीन हिस्से का नज़ारा होगा और एक हिस्सा भारत, परिस्तान के रूप में प्रकट होगा। जो दिखाते हैं कि सोने की द्वारिका पानी से निकल आयी लेकिन पानी से नहीं, तीन हिस्से पानी में होंगे। इसलिये पानी के बीच सोनी द्वारिका दिखाई देगी। इसलिये कहते हैं कि सोने की द्वारिका पानी से निकल आयी। सिर्फ उस बात का पूरा वर्णन नहीं कर सके हैं। तो उसी समय पर फर्स्ट आत्मा के जन्म की जयजयकार होगी। ऐसे नज़ारे सामने आते हैं तो पुरानी दुनिया के महाविनाश का नगाड़ा और नये फर्स्ट प्रिन्स के जन्म का नज़ारा साथ-साथ दिखाई देगा।

 जैसे नगाड़ा बजाने से पहले नगाड़े को गर्म किया जाता है तब आवाज बुलन्द होती है। यह भी योग अग्नि से नगाड़ा बजने के पहले तैयारी चाहिए तब नगाड़े में आवाज़ बुलन्द होगी। इन्तज़ाम में लगे हुए हो ना? इन्तज़ार करने वालों को भी इन्तज़ाम में लगाओ तब जयजयकार हो जायेगी। जब शरीर को चलाना आ जायेगा तब राज्य चलाना आ जायेगा। शरीर को चलाना अर्थात् राज्य करना। तो राज्य करने के संस्कार भरने हैं ना? नॉलेजफुल कहा जाता है तो फुल नॉलेज में तन, मन, धन और जन सब आ जाता है। अगर एक की भी नॉलेज कम है तो नॉलेजफुल नहीं कहेंगे। समझा? सदा सफलतामूर्त बनने का आधार भी नॉलेजफुल है। नॉलेज नहीं तो सफलतामूर्त भी नहीं हो सकते। समय के प्रमाण पुरुषार्थ की गति भी तीव्र होनी चाहिए।

समय की रफ्तार तेज है और चलने वालों की रफ्तार ढीली है तो समय पर कैसे पहुँचेंगे? एक बल एक भरोसा, यह है मुख्य सब्जेक्ट। हर समय एक की ही याद में एकरस रहना। इसी पुरुषार्थ में ही सदा सफल हो तो मंजिल पर पहुँच ही जायेंगे। जो अटूट स्नेह में रहते हैं उनको सहयोग भी स्वत: प्राप्त होता है। मुरली है लाठी इस लाठी के आधार से कोई कमी भी होगी तो वह भर जायेगी। यह आधार ही अपने घर तक और अपने राज्य तक पहुँचायेगा लेकिन नियमपूर्वक नहीं, लगन से। तो लगन से मुरली पढ़ना व सुनना अर्थात् मुरलीधर की लगन में रहना। मुरलीधर से स्नेह की निशानी मुरली है। जितना मुरली से स्नेह है उतना ही समझो मुरलीधर से भी स्नेह है। सच्चे ब्राह्मण की परख मुरली से होगी। मुरली से लगन अर्थात् सच्चा ब्राह्मण। मुरली से लगन कम अर्थात् हाफ कास्ट ब्राह्मण। अच्छा!

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

बेहद वैरागी भव!