रिवाइज कोर्स मुरली 26-10-1975 |
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
विकारी देह रूपी साँप से सारी कमाई खत्म
बापदादा सब बच्चों को देख रहे हैं कि हर एक ने यहाँ आने पर कोर्स किया है? कोर्स किया है ना? कोर्स के बाद फिर रिवाइज कोर्स चला। रिवाइज के बाद अब अन्तिम कोर्स है रियलाइज़ेशन कोर्स। अर्थात् जो कुछ सुना, जो पाया, जो बाप के चरित्र देखें, उसी प्रमाण अपने में समाया कितना और गँवाया कितना। सिर्फ सुनने वाले बने या स्वयं सम्पन्न बनें? समर्थ बने या सिर्फ अन्य श्रेष्ठ आत्माओं व बापदादा के गुणगान करने वाले बनें? ज्ञान-स्वरूप, याद-स्वरूप, दिव्यगुण सम्पन्न स्वरूप और सदा सेवाधारी स्वरूप बने या इन सबके सिर्फ सुमिरण वाले बनें?
ज्ञान तो बहुत ऊंचा है, योग बड़ा श्रेष्ठ है, दिव्य-गुण धारण करना आवश्यक है और सेवा करना मुझ ब्राह्मण का फर्ज है, ऐसा सिर्फ सुमिरण करते हो या स्वरूप भी बने हो? इसी प्रकार से अपने आप को रियलाइज करना, यह है लास्ट कोर्स। जैसे दीपावली पर पुराना पोतामेल समाप्त कर नया शुरू करते हैं और अपने रजिस्टर्स चेक करते हैं ऐसे आप सबको भी आदि से अन्त तक अर्थात् आज तक अपना रजिस्टर चेक करना है कि हर सब्जेक्ट में कितनी मार्क्स ली है। समय के प्रमाण जबकि मंजिल सामने दिखाई दे रही है, डबल लक्ष्य स्पष्ट है - वर्तमान संगमयुगी फरिश्तेपन का लक्ष्य और भविष्य देवता स्वरूप का लक्ष्य। जैसे लक्ष्य स्पष्ट है वैसे लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं?
विश्व-परिवर्तन के पहले क्या स्वयं में परिवर्तन हुआ अनुभव होता है? ऐसी चेकिंग की है? बापदादा ने सर्व बच्चों के रजिस्टर चेक किये, जिन्होंने अपनी कर्म-कहानी लिखी उनकी रिजल्ट भी देखी। तो क्या देखा - कई आत्माओं ने भय और लज्जा के वश लिखी ही नहीं है। लेकिन बापदादा के पास निराकारी और साकारी बाप के रूप में हर बच्चे का रजिस्टर आदि से आज तक का स्पष्ट है। इसको तो कोई मिटा नहीं सकता है। अब तक के रजिस्टर की रिजल्ट में विशेष तीन प्रकार की रिजल्ट हैं। एक छिपाना, दूसरा कहीं-न-कहीं फँसना, तीसरा अलबेलेपन में बहाना बनाना। बहाने बाजी में बहुत होशियार हैं। अपने आप को व अपनी गलती को छिपाने के लिए बहुत वन्डरफुल बातें बनाते हैं।
आदि से अब तक ऐसी बातों का संग्रह करें तो आजकल के शास्त्रों समान बड़े शास्त्र बन जायें। अपनी गलती को गलती मानने के बजाय उसे यथार्थ सिद्ध करने में व झूठ को सच सिद्ध करने में आजकल के काले कोट वाले वकीलों के समान हैं, माया से लड़ने के बजाय ऐसे केस लड़ने में बहुत होशियार हैं। लेकिन यह याद नहीं रहता कि अभी अपने को सिद्ध करना अर्थात् बाप द्वारा जन्म-जन्मान्तर के लिए सर्व-सिद्धियों की प्राप्ति से वंचित होना है। सिद्ध करने वालों में जिद्द करने के संस्कार जरुर होते हैं। ऐसी आत्मा सद्गति को नहीं पा सकती। अब तक मैजॉरिटी पहले पाठ अर्थात् पहली बात - पवित्र दृष्टि और भाई-भाई की वृत्ति में फेल हैं।
अब तक इस पहले फरमान पर चलने वाले फरमानबरदार बहुत थोड़े हैं। बार-बार इस फरमान का उल्लंघन करने के कारण अपने ऊपर बोझ उठाते रहते हैं। इसका कारण यह है कि पवित्रता की मुख्य सब्जेक्ट का महत्व नहीं जानते हैं, उसके नुकसान की नॉलेज को नहीं जानते। कोई भी देहधारी में संकल्प से व कर्म से फंसना, इस विकारी देह रूपी साँप को टच करना अर्थात् अपनी की हुई अब तक की कमाई को खत्म करना है। चाहे कितना भी ज्ञान का अनुभव हो या याद द्वारा शक्तियों की प्राप्ति का अनुभव किया हो या तन-मन-धन से सेवा की हो लेकिन सर्व प्राप्तियाँ इस देह रूपी साँप को टच करने से, इस साँप के विष के कारण जैसे विष मनुष्य को खत्म कर देता है वैसे ही यह साँप भी अर्थात् देह में फँसने का विष सारी कमाई को खत्म कर देता है।
पहले की हुई कमाई के रजिस्टर पर काला दाग पड़ जाता है, जिसको मिटाना बहुत मुश्किल है। जैसे योग अग्नि पिछले पापों को भस्म करती है वैसे यह विकारी भोग भोगने की अग्नि पिछले पुण्य को भस्म कर देती है। इसको साधारण बात नहीं समझना। यह पाँचवी मंजिल से गिरने की बात है। कई बच्चे अब तक अलबेलेपन के संस्कार-वश इस बात को कड़ी भूल व पाप कर्म नहीं समझते हैं। वर्णन भी ऐसा साधारण रूप में करते हैं कि मेरे से चार पाँच बार यह हो गया, आगे नहीं करूँगा। वर्णन करते समय भी पश्चाताप का रूप नहीं होता, जैसे साधारण समाचार सुना रहे हैं। अन्दर में लक्ष्य रहता है कि यह तो होता ही है, मंजिल तो बहुत उंची है, अभी यह कैसे होगा!
लेकिन फिर भी आज ऐसे पाप-आत्मा, ज्ञान की ग्लानी कराने वालों को बापदादा वार्निंग देते हैं कि आज से भी इस गलती को कड़ी भूल समझकर यदि मिटाया नहीं तो बहुत कड़ी सज़ा के अधिकारी बनेंगे। बार-बार अवज्ञा के बोझ से ऊंची स्थिति तक पहुँच नहीं सकेंगे। प्राप्ति करने वालों की लाइन के बजाय पश्चाताप करने वालों की लाइन में खड़े होंगे। प्राप्ति करने वालों की जयजयकार होगी और अवज्ञा करने वालों के नैन और मुख हाय-हाय का आवाज निकालेंगे और सर्व प्राप्ति करने वाले ब्राह्मण ऐसी आत्माओं को कुल-कलंकित की लाइन में देखेंगे। अपने किये हुए विकर्मों का कालापन चेहरे से स्पष्ट दिखाई देगा।
इसलिये अब से यह विकराल भूल अर्थात् बड़ी-से-बड़ी भूल समझ करके, अभी ही अपनी पिछली भूलों का पश्चाताप दिल से करके बाप से स्पष्ट कर अपना बोझ मिटाओ। अपने आप को कड़ी सजा दो ताकि आगे की सज़ाओं से भी छूट जायें। अगर अब भी बाप से छुपायेंगे व अपने को सच्चा सिद्ध करके चलाने की कोशिश करेंगे तो अभी चलाना अर्थात् अन्त में और अब भी अपने मन में चिल्लाते रहेंगे - क्या करूँ, खुशी नहीं होती, सफलता नहीं होती, सर्व-प्राप्तियों की अनुभूति नहीं होती। ऐसे अब भी चिल्लायेंगे और अन्त में हाय मेरा भाग्य कह चिल्लायेंगे। तो अब का चलाना अर्थात् बार-बार चिल्लाना।
अगर अभी बात को चलाते हो तो अपने जन्म-जन्मान्तर के श्रेष्ठ तकदीर को जलाते हो। इसलिये इस विशेष बात पर विशेष अटेन्शन रखो। संकल्प में भी इस विष-भरे साँप को टच नहीं करना। संकल्प में भी टच करना अर्थात् अपने को मूर्छित करना है। तो रजिस्टर में विशेष अलबेलापन देखा। दूसरी रिजल्ट कल सुनाई थी कि किन-किन बातों में चढ़ती कला के बजाय रुक जाते हैं। तीव्रगति के बजाय मध्यम गति हो जाती है। यह है मैजॉरिटी का रिजल्ट। इसलिये अब अपने आप को रियलाइज़ करो अर्थात् अन्तिम रियलाइजेशन कोर्स समाप्त करो।
अपने आप को अच्छी तरह हर प्रकार से सभी सब्जेक्ट में चेक करो। सर्व मर्यादाओं को, बाप के फरमानों को और श्रेष्ठ मत को कहाँ तक प्रैक्टिकल में लाया है, उसको चेक करो और साथ-साथ मधुबन महायज्ञ में सदा काल के लिये अन्तिम आहुति डालो। समझा? अभी बाप के प्रेम-स्वरूप का उल्टा एडवान्टेज नहीं उठाओ। नहीं तो अन्तिम महाकाल रूप के आगे एक भूल का हजार गुना पश्चाताप करना पड़ेगा।
ऐसे इशारे से समझने वाले ब्राह्मण सो देवता, सर्व प्राप्ति के अधिकार प्राप्त करने वाले अधिकारी और बीती को बीती कर भविष्य और वर्तमान के हर संकल्प को श्रेष्ठ बनाने वाले, ऐसे ब्राह्मण कुल के दीपकों को, उम्मीदवार सितारों को अपनी और विश्व की तकदीर जगाने वाले तकदीरवान आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते। ओम् शान्ति।
कुछ मुख्य भाई बहिनों से बापदादा की पर्सनल मुलाकात :-
ब्रह्मा बाप के समान क्या महारथी भी बाप समान सदा अपने को निमित्त-मात्र अनुभव करते हैं? महारथियों की यह विशेषता है कि उनमें मैं-पन का अभाव होगा। मैं निमित्त हूँ और सेवाधारी हूँ - यह नेचुरल स्वभाव होगा। स्वभाव बनाना नहीं पड़ता है। स्वभाव-वश संकल्प, बोल और कर्म स्वत: ही होता है। महारथियों के हर कर्तव्य में विश्व-कल्याण की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देगी। उसका प्रैक्टिकल सबूत व प्रमाण हर बात में अन्य आत्मा को आगे बढ़ाने के लिए पहले आप का पाठ पक्का होगा। पहले मैं नहीं। आप कहने से ही उस आत्मा के कल्याण के निमित्त बन जायेंगे। ऐसे महारथी जिनकी ऐसी श्रेष्ठ भावना है और ऐसा श्रेष्ठ स्वभाव है, वही बाप समान गाये जाते हैं।
महारथी अर्थात् महादानी अपने समय का, अपने सुख के साधनों का, अपने गुणों का और अपनी प्राप्त हुई सर्वशक्तियों का भी अन्य आत्माओं की उन्नति-अर्थ दान करने वाला - उसको कहते हैं महादानी। ऐसे महादानी के संकल्प और बोल स्वत: ही वरदान के रूप में बन जाते हैं। जिस आत्मा के प्रति जो संकल्प करेंगे या जो बोल बोलेंगे वह उस आत्मा के प्रति वरदान हो जायेगा क्योंकि महादानी अर्थात् त्याग और तपस्या-मूर्त होना। इसी कारण त्याग, तपस्या और महादान का प्रत्यक्ष फल उनका हर संकल्प वरदान रूप हो जाता है।
इसलिए महारथी की महिमा महादानी और वरदानी गाई हुई है। ऐसे महारथियों का संगठन लाइट हाउस और माइट हाउस का काम करेगा। ऐसी तैयारी हो रही है ना? ऐसा संगठन तैयार होना अर्थात जयजयकार होना और फिर हाहाकार होना। यह दृश्य भी वन्डरफुल होगा। एक तरफ अति हाहाकार और दूसरी तरफ फिर जयजयकार। अच्छा!
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।