रिवाइज कोर्स मुरली 27-10-1975
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
महादानी और वरदानी ही महारथी
विश्व-कल्याणी और महावरदानी शिव बाबा महारथी बच्चों को देख बोले:-
ब्रह्मा बाप के समान क्या महारथी भी बाप समान सदा अपने को निमित्त-मात्र अनुभव करते हैं? महारथियों की यह विशेषता है कि उनमें मैं-पन का अभाव होगा। मैं निमित्त हूँ और सेवाधारी हूँ - यह नैचुरल स्वभाव होगा। स्वभाव बनाना नहीं पड़ता है। स्वभाव-वश संकल्प, बोल और कर्म स्वत: ही होता है। महारथियों के हर कर्त्तव्य में विश्वकल् याण की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देगी। उसका प्रैक्टिकल सबूत व प्रमाण हर बात में अन्य आत्मा को आगे बढ़ाने के लिए ‘पहले आप’ का पाठ पक्का होगा। ‘पहले मैं नहीं’। ‘आप’ कहने से ही उस आत्मा के कल्याण के निमित्त बन जायेंगे। ऐसे महारथी जिनकी ऐसी श्रेष्ठ आत्मा है और ऐसा श्रेष्ठ स्वभाव हो, ऐसे ही बाप समान गाये जाते हैं।
महारथी अर्थात् महादानी। अपने समय का, अपने सुख के साधनों का, अपने गुणों का और अपनी प्राप्त हुई सर्व शक्तियों का भी अन्य आत्माओं की उन्नति-अर्थ दान करने वाला - उसको कहते हैं महादानी। ऐसे महादानी के संकल्प और बोल स्वत: ही वरदान के रूप में बन जाते हैं। जिस आत्मा के प्रति जो संवल्प करेंगे या जो बोल बोलेंगे वह उस आत्मा के प्रति वरदान हो जायेगा। क्योंकि महादानी अर्थात् त्याग और तपस्यामूर्त्त होना।
इसी कारण त्याग, तपस्या और महादान का प्रत्यक्ष फल उनका संकल्प वरदान रूप हो जाता है। इसलिए महारथी की महिमा ‘महादानी और वरदानी’ गाई हुई है। ऐसे महारथियों का संगठन लाइट-हाउस और माइट-हाउस का काम करेगा। ऐसी तैयारी हो रही है ना। ऐसा संगठन तैयार होना अर्थात् जयजयकार होना और फिर हाहाकार होना। यह दृश्य भी वन्डरफुल होगा। एक तरफ अति हाहाकार और दूसरी तरफ फिर जयजयकार। अच्छा।
मुरली का मुख्य सार
1. महारथी की यह विशेषता है कि उसमें मैं-पन का अभाव होगा। 2. महारथी के हर कर्त्तव्य में विश्व-कल्याण की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देगी।
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।