रिवाइज कोर्स मुरली   29-01-1975

                                             

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

परखने की शक्ति के प्रयोग से सफलता

आज की यह सभा राजऋषियों की सभा है। जैसे मधुबन शब्द दो बातों को सिद्ध करता है - एक मधुरता को और दूसरा बेहद के वैराग्य वृत्ति को। ऐसे ही राजऋषि शब्द का अर्थ है - राज्य करने वाले, बेगर टू प्रिन्स, जितना ही अधिकार उतना ही सर्व त्याग, सर्व त्यागी अर्थात् समय के ऊपर, संकल्प के ऊपर, स्वभाव और संस्कार के ऊपर अधिकार प्राप्त करने वाले। जैसे चाहें वैसे अपने समय, स्वभाव और संस्कार को परिवर्तन कर सकें अर्थात् जैसा समय, वैसा अपना स्वरूप व स्थिति धारण कर सकें। ऐसे राजऋषि अर्थात् सर्व अधिकारी और सर्व त्यागी बने हो? जन्म लेते ही कर्म प्रमाण, श्रेष्ठ स्वमान प्रमाण राजऋषि का मर्तबा (पद) बापदादा द्वारा प्राप्त हुआ है ना?

सर्व-अधिकारी बन गये हो या अभी बनना है? क्या समझते हो? आप सबका विशेष नारा कौन सा है? जब जन्म-सिद्ध अधिकार है तो जन्म लेने से ही प्राप्त है - तब अधिकारी तो बन ही गये ना? नॉलेजफुल अर्थात् मास्टर ज्ञान-सागर। जब मास्टर ज्ञान-सागर बन गये तो नॉलेज अर्थात् समझ से अधिकार प्राप्त होता है। समझ कम तो अधिकार भी कम। नॉलेजफुल तो हो ना? अब लास्ट स्टेज क्या है? उसको जानते हो? कर्मातीत बनने की स्टेज की निशानी क्या है? सदा सफलता-मूर्त। समय भी सफल, संकल्प भी सफल, सम्पर्क और सम्बन्ध भी सदा सफल - इसको कहते हैं सफलता मूर्त।

 ऐसे सफलतामूर्त बनने के लिए वर्तमान समय प्रमाण विशेष कौन-सी शक्ति की आवश्यकता है, जिससे कि सब बातों में सदा सफलता मूर्त बन जायें? वह कौन-सी शक्ति है? सर्व शक्तियाँ प्राप्त हो रही हैं, फिर भी वर्तमान समय प्रमाण विशेष आवश्यकता परखने के शक्ति की है। अगर परखने की शक्ति तीव्र है तो भिन्न-भिन्न प्रकार के आये हुए विघ्न, जो लगन में विघ्न बनते हैं, उन विघ्नों को पहले से ही जानकर, उन द्वारा वार होने से पहले ही उन्हें समाप्त कर देते हैं। इस कारण व्यर्थ समय जाने के बदले समर्थ में जमा हो जाता है। ऐसे ही सेवा में हर एक आत्मा की मुख्य इच्छा और उसका मुख्य संस्कार जानने के कारण, उसी प्रमाण, उस आत्मा को वही प्राप्ति कराने के कारण सेवा में भी सदा सफल रहते हैं।

तीसरी बात यह है कि दूसरों के सम्बन्ध में आने का जो मुख्य सब्जेक्ट है, उसमें भी हर एक आत्मा के संस्कार तथा स्वभाव को जानते हुए, उसी-प्रमाण उसे सदा सन्तुष्ट रखेंगे।

चौथी बात है समय की गति। किस समय कैसा वातावरण व वायुमण्डल है और क्या होना चाहिए - इसको परखने के कारण समय प्रमाण ही स्वयं को भी और अन्य आत्माओं को भी तीव्र-गति में ला सकेंगे और जैसा समय, वैसा स्वरूप धारण करने का उमंग और उत्साह भी भर सकेंगे तथा समय प्रमाण नॉलेजफुल और लॉफुल या लवफुल भी बन तथा बना सकेंगे और इस प्रकार सदा सफल बन सकेंगे, क्योंकि कभी लॉफुल बनना है और कभी लवफुल बनना है, इसलिये यह परख होने के कारण सदा सहज ही सफल रहेंगे।

ऐसे सफलतामूर्त के सामने प्रकृति व परिस्थिति भी दासी बन जाती है अर्थात् वे प्रकृति और परिस्थिति के ऊपर सदा विजयी बनते हैं। वे प्रकृति व परिस्थिति के वशीभूत नहीं होते। ऐसे विजयी को ही सदा सफलता-मूर्त कहा जाता है। इसके लिए तीन स्वरूप से बाप की बात याद रखो। तीनों स्वरूप अर्थात् निराकार, आकार और साकार। जैसे तीन सम्बन्धों में सत्-बाप, सत्-शिक्षक और सद्-गुरु की शिक्षायें स्मृति में रखते हो, वैसे ही तीन स्वरूपों से तीन मुख्य बातें स्मृति में रखो। इन तीन स्वरूपों से विशेष तीन वरदान कौन-से हैं? निराकारी स्वरूप की मुख्य शिक्षा का वरदान कौन सा है? कर्मातीत भव। आकारी स्वरूप अथवा फरिश्तेपन का वरदान कौनसा है? डबल लाइट भव।

डबल लाइट अर्थात् सर्व कर्म-बन्धनों से हल्के और लाइट अर्थात् सदा प्रकाश स्वरूप में स्थित रहने वाले। तो आकारी स्वरूप का विशेष वरदान है - डबल लाइट भव! इससे ही डबल ताजधारी भी बनेंगे। साकार स्वरूप का विशेष वरदान कौन सा है? साकार स्वरूप का विशेष वरदान है - साकार समान निरहंकारी और निर्विकारी भव! ये तीन वरदान सदा स्मृति में रखने से सदा के लिये सहज ही सफलता-मूर्त बन जायेंगे। समझा! बापदादा से भी बच्चे शक्तिमान् हैं क्योंकि वे सर्वशक्तिमान् को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बने हैं। क्या वे ज्यादा शक्तिमान् नहीं हैं? सर्वशक्तिमान् को सर्व-सम्बन्धों से अपना बना देना वा अपने स्नेह की रस्सी में बाँध लेना तो क्या ज्यादा शक्तिमान नहीं हुए? बल्कि अथॉरिटी को वर्ल्ड सर्वेन्ट बना देना - इसके निमित्त कौन? समीप व सहयोगी बच्चे।

ऐसे सर्व श्रेष्ठ सदा बापदादा को हर कर्म और हर कदम द्वारा प्रख्यात करने वाले, हर आत्मा को बाप के साथ मिलन मनाने के निमित्त बनाने वाले, सदा बाप और सेवा में लवलीन रहने वाले, लक्ष्य और लक्षण को समान बनाने वाले, साक्षात् बाप समान बन सर्व को बाप का साक्षात्कार कराने वाले, ऐसे लवफुल और लॉफुल आत्माओं के प्रति बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

विष्णु राज्याधिकारी भव!