रिवाइज कोर्स मुरली   30-01-1975

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

सेकण्ड में व्यक्त से अव्यक्त होने की स्पीड

सभी इस समय जिस एक ही लगन, एक ही संकल्प में बैठे हुए हो, वह एक ही संकल्प व लगन कौनसी है? बाप का आह्वान करना व बाप बच्चे के मिलन का मेला मनाना? जब सर्व शक्तिमान् बाप का आह्वान स्नेह और दृढ़ संकल्प से कर सकते हो तो क्या स्वयं में जिस भी शक्ति की कमी या कमज़ोरी महसूस करते हो, उस शक्ति का अपने में आह्वान नहीं कर सकते हो? जब बाप को अव्यक्त से व्यक्त बना सकते हो, केवल याद से, स्नेह के बल से, अधिकार प्राप्त होने के बल से और समीप सम्बन्ध के बल से, तो ऐसे ही हर शक्ति को वा स्वयं को भी व्यक्त से अव्यक्त नहीं बना सकते हो? जब बाप को अव्यक्त से व्यक्त में लाना सहज है तो स्वयं को अव्यक्त बनाना मुश्किल क्यों?

पुराने जमाने की कहानियाँ प्रसिद्ध हैं कि ताली बजाने से वस्तु व व्यक्ति हाजिर हो जाते थे व परियाँ प्रत्यक्ष हो जाती थीं। यह परियों की कहानी प्रसिद्ध है। ये कहानियाँ किसके बारे में हैं? ज्ञान-परियाँ व तीनों लोकों में उड़ने वाली परियाँ कौन-सी हैं? अपने को समझती हो न? ज्ञान और याद के दोनों पंख लगे हुए हैं ना? आप ज्ञान और याद के बल से एक सेकण्ड में अर्थात् इन पंखों के आधार से साकार लोक से निराकार लोक तक पहुँच जाते हो ना? ऐसे फरिश्ते-समान परियों को एक सेकण्ड में जिस शक्ति की आवश्यकता हो, संकल्प किया व आह्वान किया और वह शक्ति स्वरूप में आ जाये - ऐसे ताली बजानी आती है? ऐसी परियाँ बनी हो जिन्हों का हर कल्प गायन होता आया है।

वर्तमान समय का पुरुषार्थ एक सेकण्ड की गति का होना चाहिए। तब कहेंगे कि समय और स्वयं, दोनों की रफ्तार समान है। इसको ही फास्ट या फर्स्ट स्टेज कहा जाता है। संगमयुग पर सर्व शक्तियाँ ऐसे अपने अधिकार में चाहिये। स्वयं के शस्त्र-समान शक्तियाँ हों, जो जब चाहो कर्तव्य में ला सको। समझा? अच्छा।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सदा मायाजीत भव!