रिवाइज कोर्स मुरली 30-09-1975 |
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
सारे कल्प में विशेष पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ आत्माओं की विशेषतायें
स्वयं को सारे कल्प के अन्दर सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ पार्ट बजाने वाली विशेष आत्मायें समझते हो? आप विशेष आत्माओं की आदि से अन्त तक क्या-क्या विशेषतायें हैं व आपने कौन सा विशेष पार्ट बजाया है, उसको जानते हो? एक होता है विशेष काम करने के कारण विशेष आत्मा कहलाना, दूसरा विशेष गुणों के प्रभाव के कारण विशेष आत्मा कहलाना, तीसरा पोजीशन व स्टेटस के कारण और चौथा सम्बन्ध और सम्पर्क द्वारा अनेकों को विशेष प्राप्ति कराने के कारण। इन सब विशेषताओं को सामने रखते हुए देखो कि यह चार प्रकार की विशेषतायें किस स्टेज तक और कितने परसेन्टेज में हैं? सतयुग के आदि में आप विशेष आत्माओं की फर्स्ट स्टेज कौन-सी होती है?
उनकी विशेषता आज के भक्त भी गाते रहते हैं - जिसमें सम्पन्न और सम्पूर्णता का गायन है, वह तो सबकी स्मृति में है ना? अब आगे चलो। सतयुग के बाद कहाँ आते हो? (त्रेता) वहाँ की विशेषता क्या है? वहाँ की विशेषता भी इतनी ही प्रसिद्ध है कि जो आज के कलियुगी नेता उसी राज्य का स्वप्न देखते रहते कि ऐसा होना चाहिए। कोई भी प्लैन सोचते हैं तो भी आपकी सेकेण्ड स्टेज को अति विशेष समझते हुए उसे सामने रखते हैं और आगे चलो त्रेता के बाद कहाँ आते हैं? (द्वापर) लेकिन द्वापर में भी कहाँ पहुँचे? द्वापर में भी राज्य-सत्ता तो होती है ना? वहाँ धर्म-सत्ता और राज्य-सत्ता दो टुकड़ों में बंट जाती है, इसलिए द्वापर हो जाता है। दो पुर हो गये ना?
एक राज्य-सत्ता, दूसरी धर्म सत्ता। फिर भी आप विशेष आत्माओं के विशेष संस्कार गायब नहीं होते। चाहे अन्य धर्म पिता, धर्म सत्ता के आधार से धर्म की स्थापना भी करते हैं लेकिन आपकी विशेषताओं का पूजन, गायन और वन्दन आरम्भ हो जाता है। यादगार फिर भी आप विशेष आत्माओं का ही बनायेंगे। गुणगान आप विशेष आत्माओं के ही होते हैं। राज्य सत्ता में भी राजाई ठाठ और राजाई पावर्स रहती हैं। आपकी विशेषताओं की यादगार में शास्त्र बन जाते हैं। अपनी विशेषतायें याद आती हैं? अच्छा, इससे आगे चलो। कहाँ पहुँचे? (कलियुग) वहाँ की विशेषता क्या है? आप विशेष आत्माओं के नाम से सब काम शुरू होते हैं।
हर कार्य की विधि में आपके विशेषताओं की सिद्धि सुमिरण होती रहती है। आपके नाम से अनेक आत्माओं का शरीर निर्वाह होता है। नाम की महिमा - यह कलियुग की विशेषता है। आपका नाम सब स्थूल-सूक्ष्म प्राप्तियों का आधार बन जाता है। क्या इस विशेषता को जानते हो? अच्छा, फिर आगे चलो? कहाँ पहुँचे? (संगम) जहाँ हैं, वहाँ पहुँच गये। संगमयुग की विशेषताओं को तो स्वयं अब अनुभव कर ही रहे हो। सारे कल्प की विशेषताओं को सदा स्मृति में रखते हुए सदा अलौकिक विचित्र रास करते रहते हो। गोप-गोपियों की रास तो प्रसिद्ध ही है। तो निरन्तर रास करते हो अथवा प्रोग्राम से? यह है उल्लास का रास। लेकिन इस रास में सम्पूर्ण पूर्णमासी की रास प्रसिद्ध है।
इसका रहस्य क्या है? पूर्णमासी अर्थात् उसमें सम्पूर्णता की निशानी गाई हुई है। इस रास की विशेषतायें अब तक वर्णन करते रहते हैं। वह कौन-सी विशेषतायें? उस समय गोप-गोपियों की विशेषता क्या थी? आपकी ही बातें हैं ना? मुख्य विशेषता क्या थी, तीन बातें सुनाओ? एक विशेषता - रात को दिन बनाया हुआ था। दिन अर्थात् हर एक गोप-गोपी के जीवन में सतोप्रधानता का सूर्य उदय था। लोगों के लिये कुम्भकरण के नींद की रात थी अर्थात् तमोप्रधानता थी। दूसरी विशेषता - सारा समय जागती ज्योति थे। माया एक संकल्प-रूप में भी आ नहीं पाती थी। मायावी लोग अर्थात् माया मूर्छित थी और बेहोश थी। क्योंकि सर्व जागती ज्योति निरन्तर बाप के साथ लगन में मगन थे।
तीसरी विशेषता - सर्व का हाथ में हाथ मिला हुआ था और ताल से ताल मिला हुआ था अर्थात संस्कार मिले हुए थे। स्नेह और सहयोग का संगठन था। रास में सर्किल अर्थात् चक्र लगाते हैं ना? सर्किल अर्थात् चक्र - यह शक्ति स्वरूप, प्रकृति और माया को घेराव डालने की व किले की निशानी है। यह हैं विशेषतायें, इसलिये इस रास का विशेष महत्व गाया हुआ है। यह हुआ, संगमयुग की विशेषताओं का गायन। तो ऐसी रास निरन्तर होनी चाहिए। कितनी बार यह रास की है? अनेक बार की हुई है फिर कभी भूल क्यों जाते हो? संस्कार मिलाना अर्थात् ताल से ताल मिलाना। लेकिन जब ऐसी कोई परिस्थिति आती है तो क्या कहते हो? उस समय भक्त अर्थात् कमजोर बन जाते हो।
संस्कार मिलाना पड़ेगा, मरना पड़ेगा, झुकना पड़ेगा, सुनना पड़ेगा और सहन करना पड़ेगा - यह कैसे होगा? ऐसे-ऐसे कहने से भक्त बनते हो। इसलिए अब उस भक्त-पन के अंश के वंश को भी खत्म करो, तब ही इस रास मण्डल के अन्दर पहुँच सकेंगे। नहीं तो देखने वाले बन जायेंगे। जो करने में मज़ा है वह देखने में नहीं। तो अपनी सर्व विशेषतायें सुनी ना? ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्मायें हो? ऐसी सर्वश्रेष्ठ आत्माओं के लिये बापदादा को भी आना पड़ता है। अच्छा!
ऐसी विशेष आत्मायें जो बापदादा को भी मेहमान बनाने वाली हैं, ऐसी महान् आत्मायें जिन्हों का हर संकल्प अनेकों को महान् बनाने वाला है, ऐसे तकदीरवान जिनके मस्तक पर सदैव तकदीर का सितारा चमकता है और ऐसी पदमा-पदम भाग्यशाली आत्माओं के प्रति बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।
राशि मिलने वाले ही मणके के दाने ऐसे रास करने वाले तैयार हुए हैं? संस्कारों का मिलना अर्थात् रास से रास मिलना। रास में अगर कोई का हाथ ऊपर, कोई का हाथ नीचे होगा तो रास में मजा नहीं आयेगा। रास अर्थात् राशि मिलना। जैसे कोई भी कनेक्शन जोड़ते हैं व मिलन करते हैं तो राशि मिलाते हैं ना? अगर राशि नहीं मिलती तो जोड़ी नहीं मिलाते हैं। एक-दो में राशि मिलना अर्थात् स्वभाव, संस्कार, गुण और सेवा साथ-साथ मिलने में दिखाई दे। समान तो नहीं हो सकता। नम्बर तो होंगे लेकिन जरा सा अन्तर जो न के बराबर दिखाई दे, ऐसी राशि मिलने वाले कितने तैयार हुए हैं? क्या आधी माला बनी है? जितने भी तैयार हुए हैं, होना तो है, हुई पड़ी है सिर्फ घूँघट के अन्दर है। अच्छा!
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।