रिवाइज कोर्स मुरली  31-10-1975

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

महारथी बच्चों की मुख्य विशेषतायें

प्लैनिंग बुद्धि पार्टी है, साथ-साथ सफलता-मूर्त भी हैं। प्लैनिंग-बुद्धि के बाद सफलता मूर्त बनने में जो टाइम देते हो, मेहनत करते हो वह रिजल्ट निकालने के लिए। महारथियों की सफलता विशेष एक बात में है - वह एक बात कौन सी है? महारथी की विशेषता क्या होती है? जिस विशेषता से महारथी बना जाय, वह क्या है? महारथियों की विशेषता यह है जो सर्व की सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट लेवे, तब कहेंगे महारथी। सन्तुष्टता ही श्रेष्ठता व महानता है। प्रजा भी इस आधार से बनेगी। सन्तुष्ट हुई आत्मायें उनको राजा मानेंगी। कोई-न-कोई सेवा, सहयोग द्वारा प्राप्त कराई हो - स्नेह की, सहयोग की, हिम्मत-उल्लास की और शक्ति दिलाने की प्राप्ति कराई हो।

तो महारथी है और अगर सन्तुष्टता न कराई है तो नाम के महारथी हैं, वे काम के नहीं। बड़े भाई-बहन तो मात-पिता समान होते हैं। माता-पिता सबको सन्तुष्ट करते हैं। तो महारथी को यह अटेन्शन पहले देना है। इसके लिए स्वयं को परिवर्तन करना पड़े। परन्तु यह सन्तुष्टता का सर्टीफिकेट जरुर लेना है। यह चेकिंग करो कि कितनी आत्मायें मेरे से सन्तुष्ट हैं? मुझे क्या करना है जो मेरे से सब सन्तुष्ट रहें? महारथी में स्वयं को मोल्ड करने की शक्ति होनी चाहिए। मोल्ड करने वाला ही गोल्ड होता है। जो मोल्ड नहीं कर सकते वो रीयल गोल्ड नहीं हैं, मिक्स हैं। मिक्स होना अर्थात् घोड़ेसवार। महारथी मोल्ड होता है। प्लैन बनाना अर्थात् बीज बोना, तो बीज पॉवरफुल होना चाहिए।

 सर्व के सन्तुष्टता की और स्नेह की दुआयें, आशीर्वाद और स्नेह का पानी जरुर चाहिये। नहीं तो प्लैनिंग रूपी बीज तो पॉवरफुल होता है लेकिन स्नेह और सहयोग रूपी पानी न मिलने से पेड़ नहीं निकलता है। कभी पेड़ निकल आता है तो फल नहीं लगता, अगर फल लगता भी है तो सेकेण्ड या थर्ड किस्म का। इसका कारण पानी का नहीं मिलना है। महारथी - जिसमें सर्व-शिफ्तें हों अर्थात् सर्वगुण सम्पन्न सर्व-कलायें और सर्व-विशेषतायें हों। अगर एक दो कला कम हैं तो सर्व-कला सम्पूर्ण नहीं। सर्वगुण नहीं तो महारथी के टाइटिल से निकल जाते हैं। ये ग्रुप महारथियों का है? निमन्‍त्रण महारथियों को मिला है।

सफलता-मूर्त बनने के लिये मुख्य दो ही विशेषतायें चाहिये - एक प्योरिटी, दूसरी यूनिटी। अगर प्योरिटी की भी कमी है तो यूनिटी में भी कमी है। प्योरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत को नहीं कहा जाता, संकल्प, स्वभाव, संस्कार में भी प्योरिटी। मानों एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या या घृणा का संकल्प है तो प्योरिटी नहीं, इमप्योरिटी कहेंगे। प्योरिटी की परिभाषा में सर्व विकारों का अंश-मात्र तक न होना है। संकल्प में भी किसी प्रकार की इमप्योरिटी न हो। आप बच्चे निमित्त बने हुए हो बहुत ऊंचे कार्य को सम्पन्न करने के लिये। निमित्त तो महारथी रूप से बने हुए हो ना? अगर लिस्ट निकालते हैं तो लिस्ट में भी तो सर्विसएबुल तथा सर्विस के निमित्त बनें ब्रह्मा वत्स ही महारथी की लिस्ट में गिने हुए हैं।

महारथी की विशेषता कहाँ तक आयी हुई है? सो तो हर एक स्वयं जाने। महारथी जो लिस्ट में गिना जाता है वो आगे चल कर महारथी होगा अथवा वर्तमान की लिस्ट में महारथी है। तो इन दोनों बातों के ऊपर अटेन्शन चाहिए। यूनिटी अर्थात् संस्कार-स्वभाव के मिलन की यूनिटी। कोई का संस्कार और स्वभाव न भी मिले तो भी कोशिश करके मिलाओ। यह है यूनिटी। सिर्फ संगठन को यूनिटी नहीं कहेंगे। सर्विसएबुल निमित्त बनी आत्मायें इन दो बातों के सिवाय बेहद की सर्विस के निमित्त नहीं बन सकती हैं। हद के हो सकते हैं, बेहद की सर्विस के लिये ये दोनों बातें चाहियें। सुनाया था ना - रास में ताल मिलाने पर ही वाह-वाह होती है। तो यहाँ भी ताल मिलाना अर्थात् रास मिलाना है।

इतनी आत्मायें जो नॉलेज वर्णन करती हैं तो सबके मुख से यह निकलता है कि ये एक ही बात कहते हैं, इन सबका एक ही टॉपिक है, एक ही शब्द है, यह सब कहते है ना? इसी प्रकार सबके स्वभाव और संस्कार एक-दो में मिलें तब कहेंगे रास मिलाना। इसका प्लैन बनाया है? (प्लैन सुनाये गये)। एम तो रखी है स्थापना के कार्य को प्रख्यात करने की। प्रख्यात करने का जो प्लैन बनाया है वह अच्छा है। प्रख्यात करने के लिये प्लैन तो दूसरे वर्ष का बनाया है लेकिन इस वर्ष का जो कुछ समय अभी रहा हुआ है, इस समय ही हर एक स्थान पर वर्तमान वातावरण के अनुसार सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति जरुर चाहिए। दूसरे वर्ष की सर्विस की सफलता इस वर्ष के आधार पर होगी।

 कोई भी प्रोपेगण्डा में ऐसी सहयोगी आत्माओं का सहयोग चाहिये जिससे एक तो कम खर्च बालानशीन द्वारा मेहनत कम सफलता अधिक होती है। समय प्रमाण आप उन्हों की सेवा करेंगे तो सहयोग नहीं मिल सकेगा। लेकिन समय के पहले सेवा कर सहयोग लेने का प्रभाव पड़ता है। प्लैन तो सब ठीक-ठाक हैं। सर्व प्लैन्स जो सुनाये तो हर डिपार्टमेन्ट के व्यक्ति जरुर सम्पर्क में आने चाहिये। जैसे एज्युकेशन के व्यक्ति सम्पर्क में आने से बनी-बनाई स्टेज मिलेगी। कोई भी प्लैन की विहंग मार्ग की सर्विस के लिए यह जरुरी है। गीता की प्वॉइन्ट्स से या तो हाहाकार होगा या जयजयकार होगी। लेकिन पहले हलचल होती है पीछे जयजयकार होती है।

 ऐसी प्वॉइन्ट्स को क्लियर करने के लिए सबका सहयोग चाहिये। मिनिस्टर, वकील और जज सब चाहिये। जैसे यहाँ भी सब आ रहे हैं। डॉक्टर, वकील आदि तो इसके लिये भी सबका सम्पर्क जरुर चाहिये, मिनिस्ट्री, एसोसियेशन आदि का। अभी सभी सुनने की इच्छा रखते हैं लेकिन उनमें चलने की हिम्मत नहीं है। सहयोगी बन सकते हैं। पहले उनकी सेवा से धरनी तैयार कर पीछे विशाल कार्य का बीज डालो। प्लैन अच्छे हैं। इस वर्ष में कोई नई बात जरुर होनी है। निमित्त बनना पड़ता है परन्तु होना तो ड्रामानुसार है लेकिन जो निमित्त बनता है, उसका सारे ब्राह्मण कुल में नाम बाला होता है। यह भी प्राइज है। हर एक अपने-अपने ज़ोन की तरफ मीटिंग का रिजल्ट निकालो।

प्लैन सेट कर फिर रिजल्ट की मीटिंग करो। प्लैन में सब हाँ-हाँ करते हैं। रिजल्ट में सिर्फ पाँच निकलते हैं। तो रिजल्ट की भी मीटिंग रखो। उत्साह बढ़ाने का भी लक्ष्य रखो। सबको बिज़ी रखो, ताकि उनको भी खुशी हो कि हमने भी अंगुली दी। चाहे हार्ड वर्कर हो, चाहे प्लैनिंग बुद्धि हो, छोटों को भी आगे बढ़ाना है। नहीं तो एक उमंग और उत्साह में सर्विस करते हैं और दूसरों का वायब्रेशन, सफलता में विघ्न डालता है। तो सबकी मदद चाहिए। हर एक को कोई-न-कोई ड्यूटी बाँटों जरूर। जैसे प्रसाद सबको देते हैं तो यह सेवा का प्रसाद भी सबको बाँटों। सबके उत्साह का वायुमण्डल रहेगा तो वायुमण्डल के प्रभाव से कोई भी बाहर नहीं निकलेगा।

चाहे चक्कर लगाने वाला हो और चाहे फिदा होने वाला हो तो इस वर्ष में यह विशेषता हो। जैसे सब कहते हैं कि मेरा बाबा। वैसे कहें कि मेरी सेवा। मेरा प्रोग्राम बना हुआ है। ऐसे नहीं कहें कि बड़ों ने बनाया है। चलेगा व नहीं? नहीं, मेरा प्रोग्राम है। ऐसा सबका आवाज हो, तब सफलता निकलेगी। सबको सर्विस का चान्स दो। अच्छा!

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

परमपूज्य भव!