रिवाइज कोर्स मुरली 13-03-1981      

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

"डबल रूप से सेवा द्वारा ही आध्यात्मिक जागृति"

आज बाप-दादा सर्व शुभ चिन्तक संगठन को देख रहे हैं। शुभ चिन्तक अर्थात् सदा शुभ चिन्तन में रहने वाले, स्व-चिन्तन में रहने वाले - ऐसे स्व-चिन्तक वा शुभ चिन्तक, सदा बाप द्वारा मिली हुई सर्व प्राप्तियाँ, सर्व खज़ाने वा शक्तियाँ, इन प्राप्तियों के नशे में, साथ-साथ सम्पूर्ण फरिश्ते वा सम्पूर्ण देवता बनने के निशाने के स्मृति स्वरूप रहते है? जितना नशा उतना निशाना स्पष्ट होगा। समीप होने कारण ही स्पष्ट होता है। जैसे अपने पुरूषार्थ का रूप स्पष्ट है वैसे सम्पूर्ण फरिश्ता रूप भी इतना हीह स्पष्ट अनुभव होगा। बनूंगा या नहीं बनूंगा यह संकल्प भी उत्पन्न नहीं होगा। अगर ऐसा कोई संकल्प आता है कि बनना तो चाहिए, वा जरूर बनेंगे ही।

इससे सिद्ध होता है अपना फरिश्ता स्वरूप इतना समीप वा स्पष्ट नहीं। जैसे अपना ब्रह्माकुमार ब्रह्माकुमारी का स्वरूप स्पष्ट है और निश्चयबुद्धि होकर कहेंगे कि हाँ हम ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, ऐसे नहीं कहेंगे कि हम भी ब्रह्माकुमार कुमारी होने तो चाहिए। हूँ तो मैं ही। यह ‘‘तो' 'शब्द नहीं निकलेगा। कहेंगे हाँ हम ही हैं। क्वेशचन नहीं उठेगा कि मैं हूँ या नहीं हूँ। कोई कितना भी क्रास एग्जामिन करे कि आप ब्रह्माकुमार कुमारी नहीं हो, भारत के ही ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, बड़े-बड़े महारथी ब्रह्माकुमार कुमारी हैं, आप तो विदेशी क्रिश्चियन हो, ब्रह्मा तो भारत का है, आप कैसे ब्रह्मा कुमार कुमारी बनेंगे! गलती से क्रिश्चियन कुमार कुमारी के बदले ब्रह्माकुमार कुमारी कहते हो।

ऐसा कोई कहे तो मानेंगे? नहीं मानेंगे ना। निश्चय बुद्धि हो उत्तर देंगे कि ब्रह्माकुमार कुमारी हम अभी के नहीं हैं लेकिन अनेक कल्पों के हैं। ऐसा निश्चय से बोलेंगे ना। वा कोई पूछेगा तो सोच में पड़े जायेंगे? क्या करेंगे? सोचेंगे वा निश्चय से कहेंगे कि हम ही हैं जैसे यह ब्रह्माकुमार कुमारी का पक्का निश्चय है, स्पष्ट है, अनुभव है, ऐसे ही सम्पूर्ण फरिश्ता स्टेज भी इतनी किलियर और अनुभव में आती है? आज पुरूषार्थी हैं कल फरिश्ता। ऐसा पक्का निश्चय हो जो कोई भी इस निश्चय से टाल न सके। ऐसे निश्चयबुद्धि हो? फरिश्ते स्वरूप की तस्वीर स्पष्ट सामने है! फरिश्ते स्वरूप की स्मृति, वृत्ति, दृष्टि, कृति वा फरिश्ते स्वरूप की सेवा क्या होती है उसकी अनुभूति है?

 क्योंकि ब्रह्माकुमार वा कुमारी स्वरूप की सेवा का रूप तो हरेक यथा शक्ति अनुभव कर रहे हैं। इस सेवा का परिणाम आदि से अब तक देख लिया। इस रूप की सेवा की भी आवश्यकता थी जो हुई और हो भी रही है,होती भी रहेगी। आगे चल समय और आत्माओं की इच्छा की आवश्यकता अनुसार डबल रूप के सेवा की आवश्यकता होगी। एक ब्रह्माकुमार कुमारी स्वरूप अर्थात् साकारी स्वरूप की, दूसरी सूक्ष्म आकारी फरिश्ते स्वरूप की। जैसे ब्रह्मा बाप की दोनों ही सेवायें देखी। साकार रूप की भी, और फरिश्ते रूप की भी। साकार रूप की सेवा से अव्यक्त रूप के सवा की स्पीड तेज है। यह तो जानते हो, अनुभवी हो ना?

 अब अव्यक्त ब्रह्मा बाप अव्यक्त रूपधारी बन अर्थात् फरिश्ता रूप बन बच्चों को अव्यक्त फरिश्ते स्वरूप की स्टेज में खींच रहे हैं। फालो फादर करना तो आता है ना। ऐसे तो नहीं सोचते हम भी शरीर छोड़ अव्यक्त बन जावें। इसमें फालो नहीं करना। ब्रह्मा बाप फरिश्ता बना ही इसलिए कि अव्यक्त रूप का अग्जैम्पुल देख फालो सहज कर सको। साकार रूप में न होते हुए भी फरिश्ते रूप से साकार रूप समान ही साक्षात्कार कराते हैं ना। विशेष विदेशियों को अनुभव है। मधुबन में साकार ब्रह्मा की अनुभूति करते हो ना। कमरे में जा करके रूहरूहाण करते हो ना! चित्र दिखाई देता है या चैतन्य दिखाई देता है। अनुभव होता है तब तो जिगर से कहते हो ब्रह्मा बाबा।

आप सबका ब्रह्मा बाबा है या पहले वाले बच्चों का ब्रह्मा बाबा है? अनुभव से कहते हो वा नालेज के आधार से कहते हो? अनुभव है? जैसे अव्यक्त ब्रह्मा बाप साकार रूप की पालना दे रहे हैं। साकार रूप की पालना का अनुभव करा रहे हैं, वैसे आप व्यक्त में रहते अव्यक्त फरिश्ते रूप का अनुभव करो। सभी को यह अनुभव हो कि यह सब फरिश्ते कौन हैं और कहाँ से आये हुए हैं! जैसे अभी चारों ओर यह आवाज फैल रहा है कि यह सफेद वस्त्रधारी कौन हैं और कहाँ से आये हैं! वैसे चारों ओर अब फरिश्ते रूप का साक्षात्कार हो। इसको कहा जाता है डबल सेवा का रूप। सफेद वस्त्रधारी औरसफेद लाइटधारी। जिसको देख न चाहते भी ऑख खुल जाए।

 जैस अन्धकार में कोई बहुत तेज लाइट सामने आ जाती है तो अचानक ऑख खुल जाती है ना कि यह क्या है, यह कौन है, कहाँ से आई! तो ऐसे अनोखी हलचल मचाओ। जैसे बादल चारों ओर छा जाते हैं, ऐसे चारों ओर फरिश्ते रूप से प्रगट हो जाओ। इसको कहा जाता है - आध्यात्मिक जागृति। इतने सब जो देश विदेश से आये हो, ब्रह्माकुमार कुमारी स्वरूप की सेवा की! आवाज बुलन्द करने की जागृति का कार्य किया। संगठन का झण्डा लहराया। अब फिर नया प्लैन करेंगे ना। जहाँ भी देखें तो फरिश्ते दिखाई दें, लण्डन में देखें, इण्डिया में देखें जहाँ भी देखें फरिश्ते-ही- फरिश्ते नजर आयें। इसके लिए क्या तैयारी करनी है।

वह तो 10 सूत्री प्रोग्राम बनया था, इसके कितने सूत्र हैं? वह 10 सूत्री कार्यक्रम, यह है 16 कला के सूत्र का कार्यक्रम। इस पर आपस में भी रूह-रूहान करना और फिर आगे सुनाते रहेंगे। प्लैन बताया अब प्रोग्राम बनाना। मुख्य थीम बता दी है, अब डिटेल प्रोग्राम बनाना। ऐसे सदा शुभ-चिंतन में रहने वाले, शुभ चिन्तक, डबल रूप द्वारा सेवा करने वाले, डबल सेवाधारी, ब्रह्मा बाप को फालो करने वाले, निराकार बाप को प्रत्यक्ष करने वाले, सदा बाप समान सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न आत्माओं को बाप-दादा का याद प्यार और नमस्ते।

पर्सनल मुलाकात टीचर्स के साथ - टीचर्स तो है ही सदा भरपूर आत्मायें। ड्रामा अनुसार निमित्त बने हो, अच्छी मेहनत कर रहे हो और आगे भी करते ही रहेंगे। रिजल्ट अच्छी है। और भी अच्छी होगी। समय समीप आने के कारण जल्दी-जल्दी सेवा का विस्तार बढ़ता ही जायेगा। क्योंकि संगम पर ही त्रेता के अन्त तक की प्रजा, रायल फैमली और साथ-साथ कलियुग के अन्त तक की अपने धर्म की आत्मायें तैयार करनी है। विदेश के सभी स्थान पिकनिक के स्थान बनेंगे लेकिन ब्राह्मण आत्मायें तो राजाई घराने में आयेंगी, वहाँ राजाई नहीं करनी है, राजाई तो यहाँ करेंगे। सब अच्छी सेवा कर रहे हो लेकिन अभी और भी सेवा में, मनसा सेवा पावरफुल कैसे हो इसका विशेष प्लैन बनाओ।

वाचा के साथ-साथ मंसा सेवा भी बहुत दूर तक कार्य कर सकती है। ऐसे अनुभव होगा। जैस आजकल फलाईग सासर देखते हैं वैस आप सबका फरिश्ता स्वरूप चारों ओर देखने में आयेगा और आवाज निकलेगा कि यह कौन हैं जो चक्र लगाते हैं। इस पर भी रिसर्च करेंगे। लेकिन आप सबका साक्षात्कार ऊपर से नीचे आते ही हो जायेगा और समझेंगे यह वही ब्रह्माकुमार कुमारियाँ हैं जो फरिश्ते रूप में साक्षात्कार करा रही हैं। अभी यह धूम मचाओ। अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का अभ्यास करो। ऐसा समय आयेगा जो प्लेन भी नहीं मिल सकेगा।

ऐसा समय नाजुक होगा तो आप लोग पहले पहुँच जायेंगे। अन्त: वाहक शरीर से चक्र लगाने का अभ्यास जरूरी है। ऐसा अभ्यास करो जैस प्रैक्टिकल में सबदेखकर मिलकर आये हैं। दूसरे भी अनुभव करें - हाँ यह जमारे पास वहीं फरिश्ता आया था। फिर ढूंढने निकलेंगे फरिश्तों को। अगर इतने सब फरिश्ते चक्र लगायें तो क्या हो जाये? ऑटोमेटिकली सबका अटेन्शन जायेगा। तो अभी साकारी के साथ-साथ आकारी सेवा भी जरूर चाहिए। अच्छा - अभी अमृतबेले शरीर से डिटैच हो कर चक्र लगाओ।

प्रश्न:- सबसे बड़े ते बड़ी सेवा कौन-सी है जो तुम रूहानी सेवाधारियों को जरूर करनी है?

उत्तर:- किसी के दु:ख लेकर सुख देना यह है सबसे बड़ी सेवा। तुम सुख के सागर बाप के बच्चे हो, तो जो भी मिले उनका दु:ख लेते जाना और सुख देते जाना। किसका दु:ख लेकर सुख देना यही सबसे बड़े ते बड़ा पुण्य का काम है। ऐसे पुण्य करते-करते पुण्यात्मा बन जायेंगे। पुण्यात्मा बन जायेंगे।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

 श्रेष्ठ कर्मयोगी भव!