रिवाइज कोर्स मुरली 27-04-1983 |
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
दृष्टि-वृत्ति परिवर्तन करने की युक्तियाँ
आज बापदादा सर्व पुरूषार्थियों का संगठन देख रहे हैं। इसी पुरूषार्थी शब्द में सारा ज्ञान समाया हुआ है। पुरूषार्थी अर्थात् पुरूष प्लस रथी। किसका रथी है? किसका पुरूष है? इस प्रकृति का मालिक अर्थात् रथ का रथी। एक ही शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ तो क्या होगा? सर्व कमजोरियों से सहज पार हो जायेंगे। पुरूष प्रकृति के अधिकारी हैं न कि अधीन हैं। रथी रथ को चलाने वाला है, न कि रथ के अधीन हो चलने वाला। अधिकारी सदा सर्वशक्तिवान बाप की सर्वशक्तियों के अधिकारी अर्थात् वर्से के अधिकारी वा हकदार हैं। सर्वशक्तियाँ बाप की प्रॉपर्टी हैं और प्रॉपर्टी का अधिकारी हरेक बच्चा है। यह सर्व शक्तियों का राज्य भाग्य बापदादा सभी को जन्म-सिद्ध अधिकार के रूप में देते हैं।
जन्मते ही यह स्वराज्य सर्व शक्तियों का, अधिकारी स्वरूप के स्मृति का तिलक और बाप के स्नेह में समाये हुए स्वरूप के रूप में दिलतख्त, सभी को जन्म लेते ही दिया है। जन्मते ही विश्व कल्याण के सेवा का ताज हर बच्चे को दिया है। तो जन्म के अधिकार का तख्त, तिलक, ताज और राज्य सबको प्राप्त है ना! ऐसे चारों ही प्राप्तियों की प्राप्ति स्वरूप आत्मायें कमजोर हो सकती हैं? क्या यह चार प्राप्तियाँ सम्भाल नहीं सकते हैं? कभी तिलक मिट जाता, कभी तख्त छूट जाता, कभी ताज के बदले बोझ उठा लेते। व्यर्थ कखपन की टोकरी उठा लेते। नाम स्वराज्य है लेकिन स्वयं ही राजा के बदले अधीन प्रजा बन जाते। ऐसा खेल क्यों करते हो?
अगर ऐसा ही खेल करते रहेंगे तो सदा के राज्य भाग्य के अधिकार के संस्कार अविनाशी कब बनेंगे? अगर इसी खेल में चलते रहे तो प्राप्ति क्या होगी! जो अपने आदि संस्कार अविनाशी नहीं बना सकते वह आदिकाल के राज्य अधिकारी कैसे बनेंगे। अगर बहुतकाल के योद्धेपन के ही संस्कार रहे अर्थात् युद्ध करते-करते समय बिताया, आज जीत कल हार। अभी-अभी जीत अभी-अभी हार। सदा के विजयीपन के संस्कार नहीं तो इसको क्षत्रिय कहा जायेगा वा ब्राह्मण? ब्राह्मण सो देवता बनते हैं। क्षत्रिय तो फिर क्षत्रिय ही जाकर बनेगा। देवता की निशानी और क्षत्रिय की निशानी में देखो अन्तर है। यादगार चित्रों में उनको कमान दिखाया है, उनको मुरली दिखाई है।
मुरली वाले अर्थात् मास्टर मुरलीधर बन विकारों रूपी सांप को विषैले बनने के बजाए विष समाप्त कर शैय्या बना दी। कहाँ विष वाला सांप और कहाँ शैय्या! इतना परिवर्तन किससे किया? मुरली से। ऐसे परिवर्तन करने वाले को ही विजयी ब्राह्मण कहा जाता है। तो अपने से पूछो मै कौन? सभी ने अपनी-अपनी कमज़ोरियों को सच्चाई से स्पष्ट किया है। उस सच्चाई की मार्क्स तो मिल जायेंगी लेकिन बापदादा देख रहे थे कि अभी तक जबकि अपने संस्कारों को परिवर्तन करने की शक्ति नहीं आई है, विश्व परिवर्तक कब बनेंगे? अभी दृष्टि परिवर्तन, वृत्ति परिवर्तन यह अविनाशी कब तक बनेंगे! आप दृष्टा हो, दृष्टि द्वारा देखने वाले दृष्टा, दृष्टि क्यों विचलित करते?
दिव्य नेत्र से देखते हो वा इस चमड़ी के नेत्रों से देखते हो? दिव्य नेत्र से सदा स्वत: ही दिव्य स्वरूप ही दिखाई देगा। चमड़े की आंखें चमड़े को देखती। चमड़ी को देखना, चमड़ी का सोचना यह किसका काम है! फरिश्तों का? ब्राह्मणों का? स्वराज्य अधिकारियों का? तो ब्राह्मण हो या कौन हो? नाम बोलें क्या? सदैव हरेक नारी शरीरधारी आत्मा को शक्ति रूप, जगत माता का रूप, देवी का रूप देखना - यह है दिव्य नेत्र से देखना। कुमारी है, माता है, बहन है, सेवाधारी निमित्त शिक्षक है, लेकिन है कौन? शक्ति रूप। बहन भाई के सम्बन्ध में भी कभी-कभी वृत्ति और दृष्टि चंचल हो जाती है। इसलिए सदा शक्ति रूप हैं, शिव शक्ति हैं।
शक्ति के आगे अगर कोई आसुरी वृत्ति से आते तो उनका क्या हाल होता है, वह तो जानते हो ना। हमारी टीचर नहीं शिव शक्ति है। ईश्वरीय बहन है, इससे भी ऊपर शिव शक्ति रूप देखो। मातायें वा बहनें भी सदा अपने शिव शक्ति स्वरूप में स्थित रहें। मेरा विशेष भाई, विशेष स्टूडेन्ट नहीं। वह शिव शक्ति है और आप महावीर हो। लंका को जलाने वाले पहले स्वयं के अन्दर रावण वंश को जलाना है। महावीर की विशेषता क्या दिखाते हैं? वह सदा दिल में क्या दिखाता है? एक राम दूसरा न कोई। चित्र देखा है ना। तो हर भाई महावीर है, हर बहन शक्ति है। महावीर भी राम का है, शक्ति भी शिव की है। किसी भी देहधारी को देख सदा मस्तक के तरफ आत्मा को देखो।
बात आत्मा से करनी है वा शरीर से? कार्य व्यवहार में आत्मा कार्य करता है वा शरीर? सदा हर सेकेण्ड शरीर में आत्मा को देखो। नज़र ही मस्तक मणी पर जानी चाहिए। तो क्या होगा? आत्मा, आत्मा को देखते स्वत: ही आत्म-अभिमानी बन जायेंगे। है तो यह पहला पाठ ना! पहला पाठ ही पक्का नहीं करेंगे, अल्फ को पक्का नहीं करेंगे तो बे की बादशाही कैसे मिलेगी। सिर्फ एक बात की सदा सावधानी रखो। जो भी करना है श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ बनना है, तो हर बात में दृढ़ संकल्प वाले बनो। कुछ भी सहन करना पड़े, सामना करना पड़े लेकिन श्रेष्ठ कर्म वा श्रेष्ठ परिवर्तन करना ही है। इसमें पुरूषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज़ नहीं करो। पुरूषार्थी हैं, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह अलबेलेपन की भाषा है।
उसी घड़ी पुरूषार्थी शब्द को अलबेले रूप में यूज़ नहीं करो। पुरूषार्थी हैं, चल रहे हैं, कर रहे हैं, करना तो है, यह अलबेलेपन की भाषा है। उसी घड़ी पुरूषार्थी शब्द के अर्थ स्वरूप में स्थित हो जाओ। पुरूष हूँ, प्रकृति धोखा दे नहीं सकती। यह सब प्रकार की कमजोरियाँ अलबेलेपन की निशानियां हैं। महावीर तो पहाड़ को भी सेकेण्ड में हथेली पर रख उड़ने वाला है अर्थात् पहाड़ को भी पानी के समान हल्का बनाने वाला है। छोटी-छोटी परिस्थितियाँ क्या बात हैं! फिर तो ऐसे महावीर को कहेंगे चींटी से घबराने वाले। क्या करें, हो जाता है। यह महावीर के बोल हैं? समझदार यह नहीं कहेंगे कि क्या करें चोर आ जाता है। समझदार बार-बार धोखा नहीं खाते।
अलबेले बार-बार धोखा खाते हैं। सेफ्टी के साधन होते हुए अगर कार्य में नहीं लगाते तो उसको क्या कहेंगे? जानता हूँ कि नहीं होना चाहिए लेकिन हो रहा है, इसको कौन सी समझदारी कहेंगे! दृढ़ संकल्प वाले बनो। परिवर्तन करना ही है, कल भी नहीं, आज। आज भी नहीं अभी। इसको कहा जाता है महावीर। राम के आज्ञाकारी। आज तो मिलने का दिन था फिर भी बच्चों ने मेहनत की है तो मेहनत का फल रेसपाण्ड देना पड़ा। लेकिन इन कमजोरियों को साथ ले जाना है? दी हुई चीज़ फिर वापिस तो नहीं लेनी है ना! जबरदस्ती आ जावे तो भी आने नहीं देना। दुश्मन को आने दिया जाता है क्या? अटेन्शन, चेकिंग यह डबल लॉक, याद और सेवा - यह दूसरा डबल लॉक सबके पास है ना।
तो सदा यह डबल लॉक लगा रहे। दोनों तरफ लॉक लगाना। समझा! एक तरफ नहीं लगाना। खातिरी तो स्थूल सूक्ष्म बहुत हुई है। डबल खातिरी हुई है ना। जैसे दीदी दादी वा निमित्त बनी हुई आत्माओं ने दिल से खातिरी की है तो उसके रिटर्न में सब दीदी दादी को खातिरी देकर जाना कि हम अभी से सदा के विजयी रहेंगे। सिर्फ मुख से नहीं बोलना, मन से बोलना। फिर एक मास के बाद इन फोटो वालों को देखेंगे कि क्या कर रहे हैं। किससे भी छिपाओ लेकिन बाप से तो छिपा नहीं सकेंगे। अच्छा।
सदा दृढ़ सकंल्प द्वारा सोचा और किया दोनों को समान बनाने वाले, सदा दिव्य नेत्र द्वारा आत्मिक रूप को देखने वाले, जहाँ देखें वहाँ आत्मा ही आत्मा देखें, ऐसे अर्थ स्वरूप पुरूषार्थी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।