रिवाइज कोर्स मुरली  30-03-1983

                                                

निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।

परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।

आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :

1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।

2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।

3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।

4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।

5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।

आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।

सहजयोगी बनने का साधन - अनुभवों की अथॉरिटी का आसन (कुमारियों के साथ मुलाकात)

आज बेहद ड्रामा के रचयिता बाप बेहद ड्रामा के वण्डरफुल संगमयुग के दिव्य दृश्य के अन्दर मधुबन के विशेष दृश्य को देख रहे हैं। मधुबन स्टेज पर हर घड़ी कितने दिलपसन्द रमणीक पार्ट चलते हैं। जिसको बापदादा दूर बैठे भी समीप से देखते रहते हैं। इस समय स्टेज के हीरो एक्टर कौन हैं? डबल पावन आत्मायें, श्रेष्ठ आत्मायें। लौकिक जीवन से भी पवित्र और आत्मा भी पवित्र। तो डबल पावन विशेष आत्माओं का हीरो पार्ट मधुबन स्टेज पर चलता हुआ देख बापदादा भी अति हर्षित होते हैं। क्या क्या प्लैन बनाते हो, क्या क्या संकल्प करते हो, कौन सी हलचल में आते हो, यह हिम्मत और हलचल दोनों ही खेल देख रहे थे। हिम्मत भी बहुत अच्छी रखते हो।

उमंग-उल्लास भी बहुत आता है लेकिन साथ-साथ थोड़ा सा हाँ वा ना का मिक्स संकल्प भी रहता है। बापदादा हँसी का खेल देख रहे थे। चाहना बहुत श्रेष्ठ है कि दिखायेंगे, करके दिखायेंगे। लेकिन मन के उमंग की चाहना वा संकल्प चेहरे पर झलक के रूप में नहीं दिखाई देता है। शुद्ध संकल्प की चमक चेहरों पर चमकती हुई दिखाई दे, वह परसेन्टेज में देखा। यह क्यों? इसका कारण? शुभ संकल्प है लेकिन संकल्प में शक्ति कुछ मात्रा में है। संकल्प रूपी बीज तो है लेकिन शक्तिशाली बीज जो प्रत्यक्ष फल अर्थात् प्रत्यक्ष रूप में रौनक दिखाई दे, वह अभी और चाहिए। सबसे ज्यादा चेहरे पर उमंग-उल्लास की रौनक वा चमक आने का साधन है - हर गुण, हर शक्ति, हर ज्ञान की प्वाइंट के अनुभवों से सम्पन्नता।

अनुभव बड़े ते बड़ी अथॉरिटी है। अथॉरिटी की झलक चेहरे पर और चलन पर स्वत: ही आती है। बापदादा वर्तमान के हीरो पार्टधारियों को देखते हुए मुस्करा रहे थे। खुशी में नाच भी रहे हैं लेकिन कोई कोई नाचते हैं तो सारे वायुमण्डल को ही नचा देते हैं। उनकी एक्ट में रौनक दिखाई देती है। जिसको आप लोग कहते हैं कि रास करते-करते मचा लिया अर्थात् सभी को नचा लिया। तो ऐसी रौनक वाली झलक अभी और दिखानी है। उसका आधार सुन लिया। सुनने सुनाने वाले तो बन ही गये हो। साथ-साथ अनुभवी मूर्त बनने का विशेष पार्ट बजाओ। अनुभव की अथॉरिटी वाला कभी भी किसी प्रकार की माया के भिन्न-भिन्न रॉयल रूपों में धोखा नहीं खायेंगे।

अनुभवी अथॉरिटी वाली आत्मा सदा अपने को भरपूर आत्मा अनुभव करेगी। निर्णय शक्ति, सहन शक्ति वा किसी भी शक्ति से खाली नहीं होंगे। जैसे बीज भरपूर होता है वैसे ज्ञान, गुण, शक्तियाँ सबसे भरपूर। इसको कहा जाता है मास्टर आलमाइटी अथॉरिटी। ऐसे के आगे माया झुकेगी न कि झुकायेगी। जैसे हद की अथॉरिटी वाले विशेष व्यक्तियों के आगे सब झुकते हैं ना क्योंकि अथॉरिटी की महानता सबको स्वत: ही झुकाती है। तो विशेष क्या देखा? अनुभव की अथॉरिटी की सीट पर अभी सेट हो रहे हैं। स्पीकर की सीट ले ली है लेकिन “सर्व अनुभवों की अथॉरिटी का आसन'' अभी यह लेना है। सुनाया था ना, दुनिया वालों का है सिंहासन और आप सबका है अथॉरिटी का आसन।

इसी आसन पर सदा स्थित रहो। तो सहज योगी, सदा के योगी, स्वत: योगी हैं ही। अभी तो अमृतवेले का दृश्य भी हँसने हँसाने वाला है। कोई निशाना लगाते-लगाते थक जाते हैं। कोई डबल झूलों में झूलते हैं। कोई हठयोगी बन करके बैठते हैं। कोई तो सिर्फ नेमीनाथ हो बैठते हैं। कोई-कोई लगन में मगन भी होते हैं। याद शब्द के अर्थ स्वरूप बनने में अभी विशेष अटेन्शन दो। योगी आत्मा की झलक चेहरे से अनुभव हो। जो मन में होता है वह मस्तक पर झलक जरूर रहती है। ऐसे नहीं समझना मन में तो हमारा बहुत है। मन की शक्ति का दर्पण चेहरा अर्थात् मुखड़ा है। कितना भी आप कहो कि हम खुशी में नाचते हैं लेकिन चेहरा उदास देख कोई नहीं मानेगा।

 खोया-खोया हुआ चेहरा और पाया हुआ चेहरा इसका अन्तर तो जानते हो ना! “पा लिया'' इसी खुशी की चमक चेहरे से दिखाई दे। खुश्क चेहरा नहीं दिखाई दे, खुशी का चेहरा दिखाई दे। बापदादा हीरो पार्टधारी बच्चों की महिमा भी गाते हैं। फिर भी आजकल की फैशनेबुल दुनिया से, मन से, तन से किनारा कर बाप को सहारा तो बना दिया। इस दृढ़ संकल्प की बहुत-बहुत मुबारक। सदा इसी संकल्प में जीते रहो। बापदादा यह वरदान देते हैं। इसी श्रेष्ठ भाग्य की खुशी में, स्नेह के पुष्प भी चढ़ाते हैं। साथ-साथ हर बच्चा सम्पन्न बाप समान अथॉरिटी हो, इस शुद्ध संकल्प की विधि बताते हैं। बधाई भी देते हैं और विधि भी बताते हैं। सभी ने समारोह तो मना लिया ना!

सभी समारोह मनाते सम्पन्न बनने का लक्ष्य लेते हुए जा रहे हो ना! पहले वाले पुराने तो पुराने रहे लेकिन आप सुभान अल्ला हो जाओ। सबका फोटो तो निकला है ना। फोटो तो यादगार हो गया ना यहाँ। अब दीदी दादी भी देखेंगी कि अथॉरिटी के आसन पर कौन कौन कितने स्थित हुए! सेन्टर पर रहना भी कोई बड़ी बात नहीं लेकिन विशेष पार्टधारी बन पार्ट बजाना, यह है कमाल। जो सभी कहें कि इस ग्रुप की हर आत्मा बाप समान सम्पन्न स्वरूप है। खाली नहीं बनो। खाली चीज में हलचल होती है।

 सयाने बनो अर्थात् सम्पन्न बनो। सिर्फ कुमारियों के लिए नहीं है लेकिन सभी के लिए है। सम्पन्न तो सभी को बनना है ना। जो भी सभी आये हैं मधुबन की विशेष सौगात “सर्व अनुभवों की अथॉरिटी का आसन'' यह साथ में ले जाना। इस सौगात को कभी भी अपने से अलग नहीं करना। सबको सौगात है ना कि सिर्फ कुमारियों को है? मधुबन निवासियों को भी आज की यह सौगात है। चाहे कहाँ भी बैठे हैं लेकिन बाप के सम्मुख हैं।

आने वाले सर्व कमल पुष्प समान बच्चों को, मधुबन निवासियों को, चारों ओर के देश विदेश के बच्चों को और वर्तमान स्टेज के हीरो पार्टधारी श्रेष्ठ आत्माओं को, सभी को ‘अनुभवी भव' के वरदान के साथ वरदाता बाप की याद और प्यार और नमस्ते।

कुमारियों ने विशेष संकल्प किया! विशेष संकल्प द्वारा विशेष आत्मायें बनीं? विशेष संकल्प क्या लिया? सदा महावीरनी बन विजयी रहेंगी, यही संकल्प लिया है ना! सदा विजयी, सदा महावीरनी या थोड़े समय के लिए लिया? इसके बाद कभी भी किसी प्रकार की माया नहीं आयेगी ना! आधाकल्प के लिए खत्म हुई, कभी संकल्पों का टक्कर तो नहीं होगा! कभी व्यर्थ संकल्प का तूफान तो नहीं आयेगा? अगर बार बार माया के वार से हार खाते तो कमजोर हो जाते हैं। जैसे कोई बार बार धक्का खाता तो उसकी हड्डी कमज़ोर हो जाती है ना। फिर प्लास्टर लगाना पड़ता। इसलिए कभी भी कमज़ोर बन हार नहीं खाना। तो महावीरनी अर्थात् संकल्प किया और स्वरूप बन गये।

ऐसे नहीं वहाँ जाकर देखेंगे, करेंगे... यह गें गें वाली नहीं। जो संकल्प लिया है उसमें दृढ़ रहना तो विजय का झण्डा लहरा जायेगा। इतने दृढ़ संकल्प वाली अपने अपने स्थान पर जायेंगी तो जय-जयकार हो जायेगी। संकल्प से सब सहज हो जाता है। जो संकल्प किया है उसे पानी देते रहना। हर मास अपनी रिज़ल्ट लिखना। कभी भी कमज़ोर संकल्प नहीं करना। यह संस्कार यहाँ खत्म करके जाना। आगे बढ़ेंगी, विजयी बनेंगी - यह दृढ़ संकल्प करके जाना। अच्छा। सभी की आशायें पूरी हुई? कुमारियों की आशायें पूरी हुई तो माताओं की तो हुई पड़ी हैं। अभी आप लोग थोड़े आये हो इसलिए अच्छा चांस मिल गया। इस बारी सभी कुमारियों का उल्हना तो पूरा हुआ।

कोई कम्पलेन्ट नहीं, सभी कम्पलीट होकर जा रही हो ना! अभी देखेंगे, नदियाँ कहाँ बहती हैं। तालाब बनती हैं, बड़ी नदी बनती हैं, छोटी बनती हैं या कुआं बनता है। तालाब से भी छोटा कुआं होता है ना। तो देखेंगे क्या बनती हैं! वह रिजल्ट आयेगी ना! कुमारियों को देखकर आता है इतने हैण्ड्स निकलें, माताओं को देखकर कहेंगे कि निकलना थोड़ा मुश्किल है। तो अब निर्विघ्न हैण्ड बनना। ऐसे नहीं सेवा भी करो और सेवा के साथ-साथ मेहनत भी लेते रहो, यह नहीं करना। सेवा के साथ अगर कम्पलेन्ट निकलती रहे तो सेवा का फल नहीं निकलता। इसलिए निर्विघ्न हैण्ड बनना। ऐसे नहीं आप ही विघ्न रूप बन, दादी दीदी के सामने आते रहो, मददगार हैण्ड बनना। खुद सेवा नहीं लेना। तो सदा निर्विघ्न रहेंगे और सेवा को निर्विघ्न बढ़ायेंगे - ऐसा पक्का संकल्प करके जाना। अच्छा।

प्रश्न:- बाप को किन बच्चों पर बहुत नाज़ रहता है?

उत्तर:- जो बच्चे कमाई करने वाले होते, ऐसे कमाई करने वाले बच्चों पर बाप को बहुत नाज़ रहता, एक-एक सेकेण्ड में पद्मों से भी ज्यादा कमाई जमा कर सकते हो। जैसे एक के आगे एक बिन्दी लगाओ तो 10 हो जाता, फिर एक बिन्दी लगाओ तो 100 हो जाता, ऐसे एक सेकण्ड बाप को याद किया, सेकण्ड बीता और बिन्दी लग गई, इतनी बड़ी कमाई अभी ही जमा करते हो फिर अनेक जन्म तक खाते रहेंगे।

मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।

मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।

01-02-1979

23-12-1987

10-01-1988

07-04-1981

मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।

हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।

ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।

ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।

मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।

मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।

सम्पूर्ण पवित्र स्वरुप भव!