रिवाइज कोर्स मुरली 30-04-1983 |
निराकार ज्योतिर्बिन्दु स्वरूप परमपिता शिवपरमात्मा इस धरती पर अवतरित होकर ज्ञान और योग से धर्म की स्थापन कर रहे हैं।
परम शिक्षक शिवपरमात्मा के द्वारा बताई गई इस ज्ञान मुरली को आत्मिक स्थिति में पढ़ना चाहिए।
आत्मिक स्थिति में आने के लिए किये जाने वाले संकल्प :
1. मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, शिवबाबा मेरे परमपिता हैं।
2. मैं ईश्वरीय विद्यार्थि हूँ, बाबा मेरे टीचर हैं।
3. बाबा मेरे सद्गुरु हैं, मैं मास्टर सद्गुरु हूँ।
4. शिव परमात्मा मेरे जीवन साथी हैं, मैं शिव परमात्मा की जीवनसाथी हूँ।
5. सर्व संबंधों को बाबा से जोड़कर उस संबंध के कर्त्तव्य को ब्राह्मण जीवन में आचरण में लाने से आत्मिक स्थिति सहज हो जाती है।
आत्मिक स्थिति में, हर एक मुरली में, "बाबा मुरली मुझ से ही कह रहे हैं", ऐसे भाव से पढ़ना चाहिए।
परम पूज्य बनने का आधार
सभी मधुबन महान तीर्थ पर मेला मनाने के लिए चारों ओर से पहुँच गये हैं। इसी महान तीर्थ के मेले की यादगार अभी भी तीर्थ स्थानों पर मेले लगते रहते हैं। इसी समय का हर श्रेष्ठ कर्म का यादगार चरित्रों के रूप में, गीतों के रूप में अभी भी देख और सुन रहे हो। चैतन्य श्रेष्ठ आत्मायें अपना चित्र और चरित्र देख सुन रही हैं। ऐसे समय पर बुद्धि में क्या श्रेष्ठ संकल्प चलता है? समझते हो ना कि हम ही थे, हम ही अब हैं और कल्प-कल्प हम ही फिर होंगे। यह ‘फिर से' की स्मृति और नॉलेज और किसी भी आत्मा को, महान आत्मा को, धर्म आत्मा को वा धर्म पिता को भी नहीं है। लेकिन आप सब ब्राह्मण आत्माओं को इतनी स्पष्ट स्मृति है वा स्पष्ट नॉलेज है जैसे 5000 वर्ष की बात कल की बात है।
कल थे आज हैं फिर कल होंगे। तो आज और कल इन दोनों शब्दों में 5000 वर्ष का इतिहास समाया हुआ है। इतना सहज और स्पष्ट अनुभव करते हो! कोई होंगे वा हम ही थे, हम ही हैं! जड़ चित्रों में अपने चैतन्य श्रेष्ठ जीवन का साक्षात्कार होता है? वा समझते हो कि यह महारथियों के चित्र हैं, वा आप सबके हैं? भारत में 33 करोड़ देवताओं को नमस्कार करते हैं अर्थात् आप श्रेष्ठ ब्राह्मण सो देवताओं के वंश के भी वंश, उनके भी वंश, सभी का पूजन नहीं तो गायन तो करते ही हैं। तो सोचो जो स्वयं पूर्वज हैं उन्हों का नाम कितना श्रेष्ठ होगा! और पूजन भी पूर्वजों का कितना श्रेष्ठ होगा। 9 लाख का भी गायन है।
उससे आगे 16 हजार का गायन है फिर 108 का है फिर 8 का है। उससे आगे युगल दाने का है। नम्बरवार हैं ना। गायन तो सभी का है क्योंकि जो भाग्य विधाता बाप के बच्चे बने, इस भाग्य के कारण उन्हों का गायन और पूजन दोनों होता है लेकिन पूजन में दो प्रकार का पूजन है। एक है प्रेम की विधि पूर्वक पूजन और दूसरा है सिर्फ नियम पूर्वक पूजन। दोनों में अन्तर है ना। तो अपने से पूछो मैं कौन सी पूज्य आत्मा हूँ। पहले भी सुनाया था कि कोई-कोई भक्त, देवता नाराज न हो जाए इस भय से पूजा करते हैं। और कोई-कोई भक्त दिखावा मात्र भी पूजा करते हैं। और कोई-कोई समझते हैं भक्ति का नियम वा फर्ज निभाना है। चाहे दिल हो या न हो लेकिन निभाना है।
ऐसे फर्ज समझ करते हैं। चारों ही प्रकार के भक्त किसी न किसी प्रकार से बनते हैं। यहाँ भी देखो देव आत्मा बनने वाले, ब्रह्माकुमार कुमारी कहलाने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ना। नम्बरवन पूज्य सदा सहज स्नेह से और विधि पूर्वक याद और सेवा वा योगी आत्मा, दिव्यगुण धारण करने वाली आत्मा बन चल रहे हैं। चार सब्जेक्ट विधि और सिद्धि प्राप्त किये हुए हैं। दूसरे नम्बर के पूज्य विधि पूर्वक नहीं लेकिन नियम समझ करके करेंगे, चार ही सब्जेक्ट पूरे लेकिन विधि सिद्धि के प्राप्ति स्वरूप हो करके नहीं। लेकिन नियम समझकर चलना ही है, करना ही है, इसी लक्ष्य से जितना कायदा उतना फायदा प्राप्त करते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
वह दिल का स्नेह स्वत: और सहज बनाता है और नियम पूर्वक वालों को कभी सहज कभी मुश्किल लगता। कभी मेहनत करनी पड़ती और कभी मुहब्बत की अनुभूति होती। नम्बरवन लवलीन रहते, नम्बर दो लव में रहते। नम्बर तीसरा - मैजारिटी समय चारों ही सब्जेक्ट दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र करते हैं। याद में भी बैठेंगे - नामीग्रामी बनने के भाव से। ऐसे दिखावा मात्र सेवा भी खूब करेंगे। जैसा समय वैसा अल्पकाल का रूप भी धारण कर लेंगे लेकिन दिमाग तेज़ और दिल खाली। नम्बर चौथा - सिर्फ डर के मारे कोई कुछ कह न दे कि यह तो है ही लास्ट नम्बर का वा यह आगे चल नहीं सकता, ऐसे कोई इस नज़र से नहीं देखे। ब्राह्मण तो बन ही गये और शूद्र जीवन भी छोड़ ही दिया।
ऐसा न हो कि दोनों तरफ से छूट जाएं। शूद्र जीवन भी पसन्द नहीं और ब्राह्मण जीवन में विधि पूर्वक चलने की हिम्मत नहीं इसलिए मजबूरी मजधार में आ गये। ऐसे मजबूरी वा डर के मारे चलते ही रहते। ऐसे कभी-कभी अपने श्रेष्ठ जीवन का अनुभव भी करते हैं इसलिए इस जीवन को छोड़ भी नहीं सकते। ऐसे को कहेंगे चौथे नम्बर की पूज्य आत्मा। तो उन्हों की पूजा कभी-कभी और डर के मारे, मजबूरी भक्त बन निभाना है, इसी प्रमाण चलती रहती। और दिखावा वाले की भी पूजा दिल से नहीं लेकिन दिखावा मात्र होती। इसी प्रमाण चलते रहते। तो चार ही प्रकार के पूज्य देखे हैं ना। जैसा अभी स्वयं बनेंगे वैसे ही सतयुग त्रेता की रॉयल फैमिली वा प्रजा उसी नम्बर प्रमाण बनेगी और द्वापर कलियुग में ऐसे ही भक्त माला बनेगी।
अभी अपने आप से पूछो मैं कौन! वा चारों में ही कभी कहाँ, कभी कहाँ चक्र लगाते हो। फिर भी भाग्य विधाता के बच्चे बने, पूज्य तो जरूर बनेंगे। नामीग्रामी अर्थात् श्रेष्ठ पूज्य 16 हजार तक नम्बरवार बन जाते हैं। बाकी 9 लाख लास्ट समय तक अर्थात् कलियुग के पिछाड़ी के समय तक थोड़े बहुत पूज्य बन जाते हैं। तो समझा गायन तो सबका होता है। गायन का आधार है भाग्य विधाता बाप का बनना और पूजन का आधार है चारों सब्जेक्ट में पवित्रता, स्वच्छता, सच्चाई, सफाई। ऐसे पर बापदादा भी सदा स्नेह के फूलों से पूजन अर्थात् श्रेष्ठ मानते हैं। परिवार भी श्रेष्ठ मानते हैं और विश्व भी वाह-वाह के नगाड़े बजाए उन्हों की मन से पूजा करेगा।
और भक्त तो अपना ईष्ट समझ दिल में समायेंगे। तो ऐसे पूज्य बने हो? जब है ही परमपिता। सिर्फ पिता नहीं है लेकिन परम है तो बनायेंगे भी परम ना! पूज्य बनना बड़ी बात नहीं है लेकिन परम पूज्य बनना है। बापदादा भी बच्चों को देख हर्षित होते हैं। मुहब्बत में मेहनत को महसूस न कर पहुँच जाते हैं। अभी तो रेस्ट हाउस में आ गये ना! तन-मन दोनों के लिए रेस्ट है ना! रेस्ट माना सोना नहीं। सोना बनने की रेस्ट में आये हैं। पारसपुरी में आ गये हो ना। जहाँ संग ही पारस आत्माओं का है, वायुमण्डल ही सोना बनाने वाला है। बातें ही दिन रात सोना बनने की हैं। अच्छा।
ऐसे सदा परम पूज्य आत्माओं को, सदा विधि द्वारा श्रेष्ठ सिद्धि को पाने वाले, सदा महान बन महान आत्मायें बनाने वाले, स्वयं को सदा सहज और स्वत: योगी, निरन्तर योगी, स्नेह सम्पन्न योगी, अनुभव करने वाले, ऐसी सर्व श्रेष्ठ आत्माओं को, चारों ओर के आकारी रूपधारी समीप बच्चों को, ऐसे साकारी आकारी सर्व सम्मुख उपस्थित हुए बच्चों को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते।
दीदी-दादी जी से:- सभी परम पूज्य हो ना! पूजा अच्छी हो रही है ना! बापदादा को तो अनन्य बच्चों पर नाज़ है। बाप को नाज़ है और बच्चों में राज़ हैं। जो राज़युक्त हैं उन बच्चों पर बाप को सदा नाज़ है। राज़युक्त, योगयुक्त, गुण युक्त... सबका बैलेन्स रखने वाले सदा बाप की ब्लैसिंग की छाया में रहने वाले। ब्लैसिंग की सदा ही वर्षा होती रहती है। जन्मते ही यह ब्लैसिंग की वर्षा शुरू हुई है और अन्त तक इसी छत्रछाया के अन्दर गोल्डन फूलों की वर्षा होती रहेगी।
इसी छाया के अन्दर चले हैं, पले हैं और अन्त तक चलते रहेंगे। सदा ब्लैसिंग के गोल्डन के फूलों की वर्षा। हर कदम बाप साथ है अर्थात् ब्लैसिंग साथ है। इसी छाया में सदा रहे हो (दादी से) शुरू से अथक हो अथक भव का वरदान है इसलिए करते भी नहीं करते, यह बहुत अच्छा। फिर भी अव्यक्त होते समय जिम्मेवारी का ताज तो डाला है ना। इनको (दीदी को) साकार के साथ-साथ सिखाया और आपको अव्यक्त होने समय सेकेण्ड में सिखाया। दोनों को अपने-अपने तरीके से सिखाया। यह भी ड्रामा का पार्ट है। अच्छा!
विदाई के समय 6.30 बजे सुबह :-
संगमयुग की सब घड़ियाँ गुडमार्निंग ही हैं क्योंकि संगमयुग पूरा ही अमृतवेला है। चक्र के हिसाब से संगमयुग अमृतवेला हुआ ना। तो संगमयुग का हर समय गुडमार्निंग ही है। तो बापदादा आते भी गुडमार्निंग में हैं, जाते भी गुडमार्निंग में हैं क्योंकि बाप आता है तो रात से अमृतवेला बन गया। तो आते भी अमृतवेले में हैं और जब जाते हैं तो दिन निकल आता है लेकिन रहता अमृतवेले में ही है, दिन निकलता तो चला जाता है। और आप लोग सवेरा अर्थात् सतयुग का दिन ब्रह्मा का दिन, उसमें राज्य करते हो। बाप तो न्यारे हो जायेंगे ना। तो पुरानी दुनिया के हिसाब से सदा ही गुडमार्निंग है। सदा ही शुभ है और सदा शुभ रहेगा। इसलिए शुभ सवेरा कहें, शुभ रात्रि कहें शुभ दिन कहें सब शुभ ही शुभ है। तो सभी को कलियुग के हिसाब से गुडमार्निंग और संगमयुग के हिसाब से गुडमार्निंग तो डबल गुडमार्निंग। अच्छा।
प्रश्न:- ब्राह्मण जीवन में मुख्य फाउन्डेशन कौन सा है?
उत्तर:- स्मृति ही ब्राह्मण जीवन में फाउन्डेशन है। स्मृति का सदा अटेन्शन। स्मृति सदा समर्थ रहे तो सदा विजयी हैं। जैसे शरीर के लिए श्वांस फाउन्डेशन है ऐसे ब्राह्मण जीवन के लिए स्मृति फाउन्डेशन है। सदा स्मृति रहे - यह ब्राह्मण जन्म विशेष जन्म है, साधारण नहीं। ऊंचे ते ऊंचे बाप के साथ ऊंचे पार्टधारी हैं। तो ऊंचे पार्टधारी का हर संकल्प, हर बोल विशेष, साधारण नहीं हो सकता।
मुरली पढ़ने के बाद परम शिक्षक सद्गुरु शिवबाबा से बताई गई विधि मनन चिंतन है।
मनन चिंतन करने की विधि, शिवबाबा चार मुरलीयों में बतायें हैं।
01-02-1979
23-12-1987
10-01-1988
07-04-1981
मनन शक्ति ही दिव्य बुद्धि की खुरक है।
हर वाक्य का रहस्य क्या है?, हर वाक्य को किस समय में?, किस विधि के द्वारा कार्य में प्रयोग करना है?, और हर वाक्य को दूसरे आत्माओं के प्रति सेवा में किस विधि से कार्य में लाना है?, ऐसे चार प्रकार से हर वाक्य को मनन करना है।
ज्ञान के मनन चिंतन के द्वारा समर्थ संकल्प, समर्थ स्थिति और शक्तिशाली स्मृति में रह सकते हैं।
ज्ञान की स्मृति (मनन चिंतन) द्वारा हमको ज्ञान दाता शिवबाबा की स्मृति स्वतः रहती है।
मनन चिन्तन करने के लिए उपयोगी संकल्प के लिए "समर्थ संकल्पों का खजाना" उपर के शिर्षकों में देखा जा सकता है।
मनन चिंतन मुरलीयों के लिए इस लिंक को स्पर्श करें।